खिले हैं ज़ख़्म फूलों की तरह हर बार चुटकी में

खिले हैं ज़ख़्म फूलों की तरह हर बार चुटकी में
लहू रिसने लगा तो याद आए ख़ार चुटकी में

हुआ करता है राहत का यहां व्यापार चुटकी में
मगर होती सरे-बाज़ार है तकरार चुटकी में

अवस्था एक सी-इन्सान की क़ायन नहीं रहती
कभी मशहूर चुटकी में, कभी है ख़्वार चुटकी में

सजाकर शामियाने ख़्वाब में मैंने रखे अक्सर
खुली जो नींद मेरी तो हुए मिसमार चुटकी में

अजब है खेल शतरंजी, हंसाता है, रुलाता है
किसी की जीत चुटकी में, किसी की हार चुटकी में

सजाई सेज शब्दों ने मेरी सोचों के सीने पर
रचा शब्दों का कैसा नया संसार चुटकी में

लचीली इस ज़ुबां से कौन बच पाया मेरी तौबा!
अचानक ही फिसल जाती है ये मक्कार चुटकी में

कड़ी-सी धूप में तपकर जो लू बनकर तड़प उट्ठी
बढ़ी सहरा के लब की प्यास सौ-सौ बार चुटकी में

मेरा हमदर्द बनकर आ गया जो सामने देवी
किया मुझपर फ़रेबी ने कैसा वार चुटकी में

देवी नागरानी

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