तेरी आभा रास रसीली–बिजेंद्र एस. ‘मनु’


तेरी आभा रास रसीली
रूप दमकता रात तेरा है, यौवन का तेरा जवाब नहीं,
तेरी आभा रास रसीली है, तेरे सी किसी में आब नहीं,
तूने जीव अँधेरा दूर किया, पुलकित सी धरा अब झूमी है,
तेरी रोज बदलती रंगत है, रचना तू एक अजूबी है,
दुनिया का मात्र गौरव है, सदा शाश्वत, आज नहीं,
तेरी आभा रास रसीली है……………………..
तेरी चाल भी कितनी प्यारी है, निहरा तू नशा हमें चढ़ता है,
तन्हाई भी बढ़ती जाती है, तू दूर ज्यो मुझसे बढ़ता है,
भले तू मेरा वशी नहीं, कैसे कह दूं तेरा लाभ नहीं,
तेरी आभा रास रसीली है……………………..
जिंदगी है कहाँ, आकर तो देख, तुझे अपनों से कहाँ फुर्सत है,
हम दुनिया मैं नाकाम है अब, दिल में जो तेरे लिए रुक्सत है,
इतराता है चाहने वालों पे, खोले कभी दिल के राज नहीं,
तेरी आभा रास रसीली है……………………..
नाजुक सा दिल तूने तोड़ा है, गहरा नाता जब तुझसे है,
चाहने वालों में पीछे हूँ, तेरी लाग लगी क्या मुझसे है,
‘मनु’ सबका चाँद है आज हुआ, इतनी सी पीर बर्दाश्त नहीं,
तेरी आभा रास रसीली है…………………..

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