ब्रज की होली…

सांवरिया रंग न मो पे डार
होरी में मत कर बरजोरी
मौंसे कृष्णमुरार ………..

अचक पांव ले घर तें निकरी,
चुपके तें मेरी बहिंया पकरी
अपने रंग में रंग दई सबरी
जब देखें मेरी सूरत बिगरी
गारी देंगी सास-ननदिआ और लड़े भर्तार। सांवरिया……

फागुन का रस बरस रहा है,
ब्रजमण्डल जन हरस रहा है।
कवियों का मन तरस रहा है,
श्याम मेघ यहां बरस रहा है।
उत सें रस पिचकारी मारें,इत लट्ठन की मार। सांवरिया……

बरसाने की राधा प्यारी
नंद गाम के कृष्णमुरारी
भर भर कें मारें पिचकारी
या छवि पे जाऊं बलिहारी
मन वृन्दावन, तन गोवर्धन, रस कालिन्दि धार। सांवरिया……

- आर० सी० शर्मा “आरसी”

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