धडकनों ने लिखा गीत फिर से नया ,
ज़िन्दगी फिर वही गुनगुनाने लगी|
सांस की लय पे शब्दों के घुंघरू बजे,
मन की हसरत कोई कसमसाने लगी|
ज़र्द पत्तों की साँसें उखड़ने लगीं,
कोंपलें अब किलकतीं हैं नवजात सी|
बंद अधरों से कलियों के ऐसा लगे,
मन में घुटती हैं अरसे से कुछ बात सी|
राग बिरहा का छेड़ा पपीहे ने जब
फिर उमंगें दबीं सिर उठाने लगीं|
लेके पाती चली जब बसंती पवन,
रंग फागुन की रुत का बदलने लगा|
जाने क्या कह गई कान में तितलियाँ,
फूल कोई गुलाबी बहकने लगा|
जब से देखा पलाशों का दहका बदन,
होके मदहोश कोयल भी गाने लगी|
गीत हो या ग़ज़ल, या रुबाई कोई,
हर कलम लिख रही प्यार मधुमास का|
तिरछे-तिरछे मदनबाण ऐसे लगे,
मन खिला, फूल जैसे अमलतास का|
रंग धरती की चूनर का धानी हुआ,
मन बसंती है सरसों बताने लगी|
आर० सी० शर्मा "आरसी"