हिन्दी —रामबाबू गौतम

हिंदी- मेरी माँ है माँ- बिन कैसे रहना है,
माँ ही जीवन है माँ- जीवन का गहना है |
आओ इस माँ- को नमन करें हिन्दी का सम्मान करें,
शब्द- शब्द से महकायें छंद- छंद से इसका मान करें,
गीतों में गाकर इस हिन्दी को पूजें श्रद्धा- सुमन चढायें,
महकाती है जीवन मेरा उस माँ का हम गुणगान करें,
हिंदी के कलरव से है गूँजा मेरा भारत जो,
अब उस भारत से हमको दूर न रहना है ||
हिंदी- मेरी माँ है माँ- बिन कैसे रहना है,
हिंदी का देश-विदेशों में और पूरब-पश्चिम में सम्मान करें,
बोली जाती जो जन-२ में कश्मीर से कन्याकुमारी तक मान करें,
आओ हिंदी को अपनाकर इस नई- पीढी को कुछ दे जायें,
भारत की एकता-अखण्डता को अमरीका में दिनमान करें,
अम्बेडकर,तिलक,गाँधी,नेहरू हैं स्तम्भ देश के,
टैगोर, निराला, महादेवी इस हिंदी का गहना है ||
हिंदी- मेरी माँ है माँ- बिन कैसे रहना है,
भारत की मिट्टी-रोली और चन्दन है अभिनंदन से सम्मान करें,
नानक-बुद्ध-जैन की धरती को करुणा, सत्य-अहिंसा से मान करें,
जो भाषाएँ हैं हिन्दी की सौतेली- बहिनें उन सबको साथ पढ़ायें,
तमिल-तेलगू, उडिया-कन्नड़ गुजराती-पंजाबी का भी उत्थान करें,
उगता सूरज जहाँ है पहले बहती है गंगा- जमुना,
गर्व है हम भारतवासी- भारतवासी बनकर रहना है ||
हिंदी- मेरी माँ है माँ- बिन कैसे रहना है,
आती है आवाज जहां हर मजहब की हर मजहब का सम्मान करें,
नहीं चुराया माँ की आँख का काजल उन देशवासियों का मान करें,
माँ के मांथे पर सजती है कैसे हिंदी-बिंदी हम सबको आज बतायें,
पार सात- समुंदर प्रवासी बनकर भाषा-संस्कृति से देश महान करें,
हिंदी के गौरव में छिपा हुआ है गौरव जिन भाषायों का,
बृज, अवधी, उर्दू, कन्नौजी, पुरवी जिनको अब तक पहना है ||
हिंदी- मेरी माँ है माँ- बिन कैसे रहना है,

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