बरसों की जो गांठे मन में वो फ़ागुन ने खोली है,
बैर भाव को भूल गले मिल जाओ यारों होली है।
फ़ागुनियां रंगों का मौसम उड़ने लगा गुलाल
मन से दूर भगाओ अपने शिकवे गिले मलाल,
कोई नहीं पराया जग में सब के सब हमजोली हैं।
बैर भाव को भूल गले मिल जाओ यारों होली है।
प्रेम का रंग चढ़ाओ ऐसा चढ़े न दूजा रंग,
जीवन को सुखमय करने का सबसे सस्ता ढंग,
सबसे न्यारी सबसे मीठी ढाई अक्षर बोली है।
बैर भाव को भूल गले मिल जाओ यारों होली है।
हरा गुलाबी नीला पीला और टेसू का रंग
लालाइन गुजिया तलें, लाला घोंटें भंग
बच्चों के चेहरे पर मानो कढ़ी हुई रंगोली है।
बैर भाव को भूल गले मिल जाओ यारों होली है।
फूल रही है सरसों पीली उड़े गुलाल अबीर
गली गली में चंग संग ये गाता फ़िरे कबीर,
जेठ लगे देवर सा भाभी देवर बीच ठिठोली है।
बैर भाव को भूल गले मिल जाओ यारों होली है।
आर० सी० शर्मा”आरसी”