रोज कोई उम्मीदों की किश्ती डूबती है,
कितना गहरा है मेरी आँखों का समंदर|
रोज बढ़ता जा रहा दुनिया का उजियारा,
साथ ही बढता जा रहा अँधियारा मेरे अंदर|
ताकत को करता है सलाम ,हारे को हरा कर,
समझता है आदमी,खुद को सिकंदर |
कोई छीनता है रोटी ,कोई छीनता है आसरा,
कोई जिंदगी तक छीन लेता है ,
वाह रे दुनिया के सिकंदर |
कहाँ तक गिरेगा इंसान,सोच सोच कर,
हैरान है भगवान्,हैरान है पीर पैगम्बर|
Sunil Jain