प्राणों की निर्मल धारा में, शाश्वत जीवन की गहराई
इस गहराई के अंतस में ,दिखती है तेरी परछाई

तू नैनो से ओझल ओझल , इन प्राणों में स्पंदित है
इस कारन तेरी सृष्टी का, रोम रोम भी आन्दित है
मौन क्षणों में सुन सकता है हर साधक तेरी सहनाई

ये काया तेरा मंदिर है, इन प्राणों में तेरी खुशवू
निराकार साकार सभी में, दमक रहा है तेरा जादू
जब जब में चिंतन में उतरा ,तब तब सुधि तेरी ही आयी

जीवन मरने की क्रिया है , मरना जीवन से मुक्ती है
उलट बंसी ये समझा न आये ,ये आखिर कैसी सुक्ती
पंडित पोती पढ़ पढ़ हारे, समझ सके न अक्चर ढाई
हेमंत त्रिवेदी [ अमन ]

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