तेरी सुधि आती बार-बार
गाता अतीत के गीत,किन्तु मेरी वीणा के तार !
यौवन का गुरुतर मार लिये
डगमग सा पग बढ़ता जाता
शैशव तेरा मृदु प्यार लिये !
जीवन का कटु अनुभव पाकर,कर रहा पुन: तेरी पुकार !
तेरी सुधि आती बार-बार !
अन्तर में जलती आग एक,
नव सुधि का मंद चिराग एक,
मेरे प्राणों में गूँज रहा-
अविरल अभाव का राग एक !
जब गा उठता है भावुक मन,बहती आँखों से अश्रु धार !
तेरी सुधि आती बार-बार !
लघु जीवन का जलता मरुस्थल
आशा के अंकुर दग्ध विकल
सुख-दुख की आँधी में उड़ती-
पत्तों की आशाएँ प्रतिपल ।
ढ़ल जायेगा हिमकण सा यौवन पा चौथेपन का उतार !
तेरी सुधि आती बार-बार !
तू एक बार फ़िर आ जाता,
मेरे जीवन पर छा जाता,
अटपटी गिरा में कुछ भूले-
विसरे गीतों को गा पाता ।
मेरे जीवन के पतझड़ में ,ला देता वासन्ती –वहार !
तेरी सुधि आती बार-बार !
जननी के आँचल की छाया,
में थी शीतल कोमल काया,
गंगा सा निर्मल था अंतर-
थी दूर कुटिल जग की माया ।
प्राणों को प्लावित करती थी,माता के आँचल की वयार !
तेरी सुधि आती बार-बार !