और खिडकी खुली रही


लेः अनुराधा शर्मा पुजारी
अनुः नागेन्द्र शर्मा

विवर्ण हुए गुलाबी रंग का परदा लगे खिड़की के पास वह हमेशा एक निश्चित समय पर आकर खड़ी हो जाया करती थी। खिड़की पर फैली मनीप्लांट की लता के पत्ते उसे स्पर्ष करते रहते। ठीक उसी समय सुनहरे रंग की एक कार उधर से गुजरती। ड्राइविंग सीट पर बैठा ब्यक्ति एक बार खिड़की की ओर देखा करता और पास बैठी उसकी पत्नी उस समय कुछ कह रही होती लेकिन वह ब्यक्ति उसकी बातों की ओर ध्यान न दे कर खिड़की की ओर देखते हुए अपनी कार को आगे बढ़ा ले जाता। यह क्रम हमेशा चलता रहता और एक नियम सा बन गया था।
एक दिन अपनी मां की चद्दर धोते रहने के कारण वह हमेशा के निश्चित समय पर खिड़की के पास नहीं थी। अचानक याद आने पर वह चद्दर को ज्यों की त्यों छोड़ कर दौड़ती हुई खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई। उसे सिर्फ पांच छः मिनट ही लेट हुई होगी। अनजाने ही उसका मन उदास हो गया। लेकिन जब वह खिड़की के पास आई तो उसकी सारी उदासी दूर हो गई। उसका तन मन चित्त प्रफुल्लित हो उठा। जैसे धरा के समस्त सुन्दर रंग अपनी छटा उसके चेहरे पर बिखेर दी हों। उसने देखा वह ब्यक्ति कार का बोनेट खोल कर कुछ जांच कर रहा है। लेकिन बोनेट की आड़ मे उसकी नजर खिड़की की ओर ही थी। क्या हो गया गाड़ी को, कार के भीतर से पत्नी झुंझलाती हुई पूछ रही थी। गाड़ी का बोनेट बंद हुआ। वह ब्यक्ति खिड़की की ओर देखते हुए अपनी ड्राइविंग सीट पर बैठा, गाड़ी स्टार्ट की और चल पड़ा। उस दिन वह थोड़ी सी हंसी पर वह हंसा तो नहीं लेकिन अपने चेहरे पर छायी स्मित रेखा को वह वह छुपा नहीं पाया।
अन्य एक दिन ---- रिमझिम बारिश हो रही थी। वही सुनहरे रंग वाली गाड़ी आकर रुकी। उस दिन उसकी पत्नी उसके साथ नहीं थी। शाम का समय था, वह धूपिया हाथ मे लिए जलाने की तैयारी मे थी पर जलाया नहीं था। वह कार से बाहर आया और रुमाल सर पर रख कर दौड़ता हुआ बरामदे तक पहूंच गया। सुनहले रंग की गाड़ी वाले ब्यक्ति को एकबएक बरामदे मे देख कर अवाक हो गई। उसने कहा – प्यास लगी है, एक गिलास पानी पीना है। उसने दौड़ कर पानी एक गिलास लाकर उसको दिया। पानी का गिलास देते समय उसके कांपते हाथ का स्पर्ष ब्यक्ति के हाथ से अनजाने ही स्वतः हो गया। ब्यक्ति के स्पर्ष से उसने अपने अंदर एक सिहरन महसूस की जिसका अनुभव उसे आज तक नहीं हो पाया था। ‘तुम्हारे घर की बारिश मै ले जाऊँ’? उसने स्वीकृति मे अपना मस्तक भर हिलाया, कुछ कह न सकी। फिर वह उसी तरह दौड़ते हुए गाड़ी मे बैठ कर चला गया। इसी बीच मां ने आकर पूछा, बेटी, कौन था, उसने अपनी गर्दन इधर उधर हिला कर समझाया, मै नहीं पहचानती।
उस दिन के बाद से वह सजने संवरने लगी। आयने के सामने खड़ी हो कर आँखों मे काजल की पतली सी रेख सारी। कई दिनो के उलझे बालों को कंघी से सुलझाया। गरीबी की मर्यादा के उसका यौवन दबा पड़ा था वह गुलांचे मारने लगा। अंग अंग से उसका यौवन बाहर प्रदर्शित होने लगा। अत्यंत दुर्बल हो चली उसकी मां ने उसके सजने संवरने के ढंग को देख कर उसे कहा भी, बेटी, आजकल क्यों इतनी सजने संवरने लगी हो। भला, गूंगी लड़की के रुप को कौन देखेगा, उसकी मजबूरी जानने के बाद कौन है ऐसा जो उसका हाथ तामेगा।
बाहर से वारिश का पानी जैसे रास्ता पा कर घर मे घुस आता है उसी तरह उसकी मां का दूर सम्पर्कीय एक रिश्तेदार उसके घर आया और साथ मे थैला भर कर चावल, दाल और सब्जी आदि कई घरेलू सामान भी लाया था। वह स्वंयभू दयावान रिश्तेदार अकसर उनके घर आया करता और अपना काम धाम करके लौट जाया करता था। लेकिन इस बार वह नव प्रस्फुटित यौवनांगी को देख कर हैरान था। सुनहले रंग वाली गाड़ी वाला ब्यक्ति काफी दिनों से न आने के कारण वह सोचती दिन दिन प्रस्फुटित यौवन का क्या होगा। यौवन की ब्याकुलता उसके तन मन पर छा रही थी।
एक दिन बारिश की रात मे उसे लगा कोई बली पुरुष उसको अपनी जकड़ मे ले रखा है। जिस रिश्तेदार को हमेशा से देखती व मिलती आ रही थी उसके शरीर की उन्मादना उत्तेजना के प्रति जैसे वह अनजाने ही समर्पित होती जा रही थी।
उसके बाद वह कथित रिश्तेदार उसका सर्वस्व तूट कर चलता बना। समय बितता चला गया। धीरे धीरे उसे महसूस होने लगा कि उसका उदर उर्द्धगामी होता जा रहा है। उसे लगा उसके शरीर मे एक और शरीर पल रहा है। यह खबर आग की तरह चतुर्दिक फैल गई। रोज रोज के धिक्कार, निंदा के स्वर और हर तरफ से ब्यंग तुणीर उसकी मां सहन नहीं कर पा रही थी। वह चल बसी। गूंगी और बेसहारा उदर मे पल रहा शरीर धरा की रोशनी देख भी नहीं पाया कि उसको मौत ने अपने आगोस मे ले लिया।
उसके बाद तो निःशंकोच अपने उदर मे जहां तहां से वैसे ही शरीर धारण करने लगी। जहां तहां से उदर मे पलने के लिए प्राप्त अतिरिक्त शरीर के सहारे बारिश मे चूने वाली उसकी छत अब ठीक हो चली। उसकी दरिद्रता समाप्त हो गई। धीरे धीरे दुनियां की बातों का कोई खौफ उसे नहीं रह गया।
आखिर ऐसा कब तक चलता। अनेक लोगों के रोज रोज के उत्तेजनापूर्ण कामोत्यजित कसाव से उसका शरीर दुर्बल हो चला। सर के केशों ने सफेदी ओढली। शरीर की चमड़ी झुर्रियों मे तब्दील हो गई। कोई आकर्षण नहीं रह गया और इस तरह उदर के उर्द्धगामी होने की भी कोई संभावना नबीं रही। लेकिन सुनहले रंग वाली कार की प्रतिक्षा मे खिड़की के पास निश्चित समय पर आकर खड़ी होने के क्रम को उसने जारी रखा । और ........ खिड़की हमेशा खुली रही।

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