इस वर्ष पुनः उत्साह का वातावरण था। चारों ओर हर्ष की ध्वनियां गूंज रही थीं। बच्चे झूम रहे थे। बड़े घरों की सफाई में लगे थे, दीपों का त्यौहार दीपावली आने वाला था।
घर हो या गली, दूकान हो या सड़क। गन्दगी को ढूंढ़ -ढँूढ़ कर साफ कर दिया गया। ऐसा लगता था कि जो कार्य नगर पालिका न कर सकी वह इस दीपावली ने आकर करवा दिया।
बच्चे उत्साहित थे कि चलो, दादाजी से कुछ नया सुना जाये। काफी दिन हो गये कोई नयी बात दादा जी ने बतलायी भी नहीं है। चेतना ने शिखा, मिलन, उपदेश, पे्ररणा व शिखर को बुलाते हुए कहा।
मित्रों आओ, दादा जी के कमरे मे चलते हैं। उनसे दीपावली के सम्बन्ध में कुछ पूछते हैं।
ठीक है, सभी बच्चों ने चलते हुए कहा।
दादा जी कमरे से बाहर आकर बगीचे में आकर बैठे ही थे कि बच्चे आ गए-
दादा जी नमस्ते। दादा जी नमस्ते!! कहकर बच्चे दादा जीे को घेरकर खड.े हो गये,
बैठो बच्चो, कैसे आना हुआ। क्या दीपावली की सारी तैयारियां हो गई हैं। दादाजी ने बच्चो से पूछा,
हां दादा जी, वैसे दीपावली तो कल है। आज हम सब आपके पास कोई नयी कहानी सुनने के लिए आये हैं-
कैसी कहानी बच्चो, चेतना तुम्ही बतलाओ। दादा जी ने कहा,
दादा जी पेड़ों के दीपावली मनाने की कहानी, क्या पेड़ भी हम सब की तरह दीपक जलाते हैं। चेतना बोली,
हां बच्चों, ध्यान से सुनिये- यह सब पेड.- पौधे अपनी तरह से दीपावली मनाते हैं। दीपावली मनाना केवल दीपक जलाना ही नहीं होता है, बल्कि दीपक के समान स्वयं जलकर दूसरो को प्रकाशित करना भी होता है। यह पेड. पौधे तो अपने जन्म से मृत्यु के बाद तक छाल, लकड.ी, फूल, फल, पत्ती आदि दूसरों को समर्पित करते रहते हैं। फिर भी इनके महत्व को अनदेखा किया जाता है। इसलिए आज यह भी उदासीन हो गये हैं। जानते हो इसका दोषी कौन है? दादा जी ने कहानी कहना रोकते हुए कहा-
बताओ दादा जी, आप ही बतलाइये, उपदेश ने कहा।
तो सुनो बच्चों, इसके लिए दोषी मानव है। आज चारो ओर जैसी धूल उड. रही है। धुएं ने सड़कों पर रात में निकलना मुश्किल कर दिया है। ऐसा पहले नहीं था। चारो ओर हरियाली थी बहुत सारे पेड.-पौधे थे। न इतनी अधिक गरमी पड़ती थी और न ही कभी कम। न ही कभी भयंकर बरसात हुआ करती थी। एक ओर सूखा तो दूसरी और बाढ. भी नहीं आती थी। हमारे धार्मिक ग्रन्थों में तो इन पेड़- पौधों में से कुछ को प्रकाशित होना भी बतलाया गया है।
दादा जी विस्तार से बताओ, प्रकाशित होना कहीं उनका दीपावली मनाना ही तो नहीं था। मिलन ने अपनी जिज्ञासा प्रकट करते हुए कहा,
हां बच्चों, ऐसा ही समझ लो, हिमालय क्षेत्र में पहले पायी जाने वाली कुछ वनस्पतियाॅं अपनी पत्तियों से प्रकाशित होती थीं। पत्तियों से प्रकाश भी निकलता था। जिसके कारण उनको रात मे पहचानना मुश्किल हो जाता था। रामायण में हनुमान जी भी इसी कारण संजीवनी बूटी को पहचान नहीं पाये थे, क्यांेकि वहाॅ स्थिति सभी वनस्पतियाॅ एक जैसी ही प्रकाशित हो रही थीं। इसलिए वह सम्पूर्ण पहाड़ ही उठा लाए थे।
पहले बच्चों रोज रात ही इन वृक्षों की दीपावली होती थी। इनकी प्रत्येक पत्ती दीपक का कार्य करती थी।
दादा जी अब क्यों नहीं? इन वृक्षों की पत्तियां प्रकाश उत्पन्न करती। प्रेरणा ने आश्चर्य से पूछा,
बच्चों, यह सब आज के मानव की अंधी लालसा का परिणाम है। उसने वृक्षों का अधाधुंध विनाश किया है। अगर हम सभी अब भी सुधर जाये ंतो हो सकता है कि वृक्ष भी पहले जैसे हो जायें रात में जुगनू ही नहीं वृक्षों की पत्तियां भी जगमगाने लगे।
अच्छा, तुम सब अपने-अपने घर जाओ। कल दीपावली भी है। दादा जी ने अपनी कहानी समाप्त करते हुए कहा।