ले. अनुराधा शर्मा पुजारी
अनु. नागेन्द्र शर्मा
एक टेबुल। चार ब्यक्ति। एक पीटर स्काट्स व्हिस्की की आधी बोतल। रोष्टेट
मूंगफली की एक प्लेट। सोडा और पानी की बोतल। प्रथम ब्यक्ति ने गिलास से एक
सिप लेकर कहा –
मेरा मानना है कि ‘रिक्रियसन ऑफ माइण्ड’ की अपनी एक हमियत होती है और इसे
गहराई से समझना बहुत जरुरी है। जीवन के बियालीस साल पूरे कर दिये और पीछे
घूम कर सोचता हूं कि मैने अब तक क्या किया।
व्दितीय ब्यक्ति – क्यों ? हम सब मे तुम ही सबसे कामयाब आदमी हो। आर्मी मे
रह ढेरों कमाई की और अपने यौवन के प्रारम्भ मे ही सेवानिवृत हो कर इरान की
तेल कम्पनी मे काम किया और वहां भी अच्छा पैसा कमाया। अब एक शानदार रिसोर्ट
खोल कर आराम की जिन्दगी बिता रहे हो। सैंकड़ों लोगों को तुमने रोजगार दे
रखा है, उनके परिवार की दुवा तुम्हे मिल रही है। अपनी इकलौती बेटी को विदेश
भेज कर पढा रहे हो। पति को परमेश्वर मानने वाली लक्ष्मी स्वरुपा पत्नी है,
सबकुछ तो है तुम्हारे पास, तुम्हे और क्या चाहिए।
प्रथम ब्यक्ति – फिर भी पता नहीं मन क्यों उदास रहता है। उस दिन मिताली
रेस्त्रां चला गया था जहां हम लोग कॉलेज के दिनो मे अड्डा जमाया करते थे।
मेज और कुर्सियां वर्षों पहले की अपेक्षा अधिक करीने से सजी हुई थी। कभी
इसी रेस्त्रां मे मै और स्वप्ना एक दूसरे को निहारते हुए चाय की चुस्कियां
लिया करते थे ठीक उसी तरह मैने देखा एक युवा जोड़ा एक दूसरे की आंखों मे
आंखे डाल कर चाय की चुस्कियों का मजा ले रहे हैं। मुझे उस समय मेरा वह वक्त
याद आया जब मै जेब मे मात्र दस ही रुपैये रख कर इसी रेस्तारां मे स्वप्ना
के साथ बैठ बड़े सुकून के साथ एक लम्बा समय गुजार कर कितना सुखी था।
व्दितीय ब्यक्ति– स्वप्ना के साथ तुमने विवाह क्यों नही किया ? मुझे याद है
तुम लोग जब आपस मे रुठ जाया करते तो कितनी ही बार मुझे सुलह करानी पड़ती
थी।
प्रथम ब्यक्ति- दरअसल मै ही पीछे हट गया था, शायद। मै ईंजिनियरिंग के थर्ड
ईयर का छात्र था और स्वप्ना परिवार की बड़ी लड़की। उसके पिता स्वप्ना का
विवाह किसी धनी व्यवसायी के लड़के से करना चाहते थे लेकिन वह बिल्कुल तैयार
नहीं थी। इसके अतिरिक्त स्वप्ना की दो छोटी बहने थी और पिता रिटायर होने
वाले थे। दूसरे मेरे एक बड़े भाई भी हैं उस समय उनका भी विवाह नहीं हुआ था,
उनके विवाह के पहले मै कैसे विवाह कर सकता था। कुल मिला कर उस समय स्वप्ना
के साथ रिश्ते की बात सोच भी नही पाया। एक दिन मैने उसे कह दिया, मेरे जीवन
मे तुम्हारा स्थान कोई नहीं ले सकता लेकिन तुमसे मै शादी नहीं कर सकता।
अपनी कायरता छुपाने के लिए मेरे पुरुषत्व के अहंकारवश मैने ऐसा कह डाला। वह
अवाक हो कर मेरी ओर देखती रह गई। ‘प्रेम का यदि यही अर्थ है तो पापा जिसके
साथ मेरा विवाह करना चाहते हैं मै उसी के साथ विवाह करुंगी’। वह
क्रोध,क्षोभ और हताशा ब्यक्त करते हुए फफक फफक कर रोने लगी। मैने शांत्वना
देने के लिए हाथ बढ़ाया तो उसने कहा ‘खबरदार, मुझे मत छूना’। बस वहीं कुछ
समाप्त हो गया। स्वप्ना की आंखों मे झांक कर उसके प्यार को महसूस करने का
सुख, स्वप्ना की कमर मे हाथ डाल कर उसकी गोद मे लेटे हुए अनेक सपने देखने
का सुख मैने जीवन भर के लिए एक पल मे खो दिया। कुछ वर्षों बाद मैने अपनी
पसंद की लड़की से विवाह किया और आज वह मेरी पत्नी है। मेरी पत्नी मे आज मै
स्वप्ना को खोजते खोजते परेशान हूं। लेकिन उसमे मुझे स्वप्ना नहीं मिलती।
मुझे आज तक एक से एक बढ़ कर न जाने कितनी ही सुन्दर लड़कियों का सानिध्य,
सामिप्य मिला। लेकिन उनमे स्वप्ना के प्यार की खुशबू दूर दूर तक नहीं थी।
मेरे सामिप्य मे आने वाली जब कोई लड़की मेरी तारीफ मे कहती ‘यू आर
वण्डरफुल’ तब मुझे झट से स्वप्ना याद आ जाती।
मिताली रेस्तारां मे एक कप चाय के दो भाग कर हम लोग पिया करते थे। कभी कभी
वह मेरे हाथ अपने हाथों मे ले सहलाते हुए देखा करती । एक दिन मेरे हाथों को
देख कर उसने कहा था ‘छी, कितने गंदे हो, नाखून क्यो नहीं काटे’। दूसरे ही
दिन वह अपने बेग मे नेल कटर लाई और मेरे नाखून काटते समय उसने बड़बड़ाते
हुए कहा – ‘ यह तो मै ही हूं जो इतने गंदे और लापरवाह से प्रेम कर बैठी। मै
या तो अंधी हूं अथवा मूर्ख’।
व्दितीय ब्यक्ति- शायद स्वप्ना भी तुम्हे इसी तरह याद करती है। मुझे वह
दिल्ली के अस्पताल मे मिली थी। अपने कोई इलाज के लिए आई थी। आजकल वह बहुत
कम बोलती है। उसने हमारे साथ के सब की खैरीयत पूछी। तुम्हारी चर्चा करने पर
उसने कहा- ‘उसके बारे मे मुझे कुछ नही जानना। सिर्फ अपना ही सुख और अपनी ही
खुशी चाहने वालों मे मेरी कोई दिलचस्पी नहीं।
प्रथम ब्यक्ति अवाक हो होकर व्दितीय ब्यक्ति की ओर कुछ देर देखता रहा।
‘इतने दिन तुमने मुझे बतलाया क्यों नहीं’।
--- यह सोच कर कि तुम नाराज हो जाओगे, नहीं बतलाया।
--- स्वप्ना जानती है कि मै अपने इस जीवन से खुश नहीं हूं। मेरा जीवन नरक
बन कर रह गया है। वह तो शायद पहले जैसे ही होगी।
तृतीय ब्यक्तिः उसके बाद का वाकया मै बतलाता हूं, सुनो। मैने ही स्वप्ना का
ईलाज किया था। उसको वेस्ट कैंसर है लेकिन अर्ली स्टेज होने के कारण ठीक
होने की संभावना है।
प्रथम ब्यक्तिः इसका मतलब तुमने उसके कपड़े उतार कर उसका वक्ष भी देखा।
क्यों देखा ? डाक्टर होने का फायदा उठाया।
तृतीय ब्यक्तिः अरे भाई, उस समय वह मेरे लिए एक पेसेंट थी सिर्फ पेसेंट
इसके अलावा कुछ नहीं और इसके अतिरिक्त उसका पति उसके साथा था।
प्रथम ब्यक्तिः कैसा जाहिल और मूर्ख है उसका पति। क्या उसे कोई लेडी डाक्टर
नहीं मिली ? तब तो तुमने उसके वक्ष के दाहिने तरफ वाला तिल भी देखा होगा।
तृतीय ब्यक्तिः अरे भाई, जरा समझने की कोशिश करो। तुम जिस तिल की बात कर
रहे हो वह दाल के दाने के बराबर बड़ा हो गया है। फॉर्म ऑफ मेलिगनेंसी।
प्रथम ब्यक्तिः मै यह कुछ नहीं जानता, वह तिल मेरा है और सिर्फ मेरा, उस पर
मेरा हक है। मझे यकीन है कि स्वप्ना ने अपने हसबैण्ड को भी उस तिल को छूने
नहीं दिया होगा।
व्दितीय ब्यक्तिः तुम्हे नशा शायद ज्यादा हो गया। चलो, चलते हैं। जरा समझने
की कोशिश करो। स्वप्ना अब तुम्हारे जीवन मे नहीं है। उसका अपना एक संसार
है। उसके पेट मे उसके पति का बच्चा पल रहा है। तुम अपनी पत्नी और पुत्री के
साथ एक सफल जीवन ब्यतीत कर रहे हो। तुम्हारे पास रुपैया पैसा, धन सम्पति और
हर तरह की सुख सुविधा आदि सब कुछ तो है। तुम जो चाहो और जैसे चाहो भोग सकते
हो।
प्रथम ब्यक्ति टेबुल पर सर टेक कर सोते हुए नशे मे बड़बड़ाने लगा, सब कुछ
होते हुए भी स्वप्ना का वह तिल मेरे पास नहीं है। वह तिल मेरे लिए एक
ब्याधि बन चुका है। तुम्र्हारे जैसा कोई डाक्टर बड़ी निर्ममता से उसे अपने
कोमल स्थान सहित काट कर फेंक देगा।
चौथा ब्यक्तिः बस खत्म करो यह किस्सा, यह तो पागल हो गया है। न स्वप्ना का
प्रसंग छिड़ता और न इतनी बात बनती।
व्दितीय ब्यक्तिः प्रेम का अर्थ हमेशा के लिए मानसिक मालिकाना हक कदापि
नहीं हो सकता।
तृतीय ब्यक्तिः पता नहीं, कभी कभी मेरा मन भी उदास हो जाता है। जीवन मे जो
खो गया उसके लिए प्रेम बार बार क्यों उमड़ता है।
चौथा ब्यक्तिः जीवन मे जो नहीं मिलता लेकिन आकर्षण बना रहता है उसी का नाम
तो प्रेम है। जीवन मे इच्छित प्रेम का मिल जाना कुछ नहीं बल्कि निकट
सानिध्य मात्र है।
व्दितीय ब्यक्तिः नहीं, यह सच नहीं है।
(चारों ब्यक्तियों पर से शराब की गहरी खुमारी उतर कर अब नशा गुलाबी होता जा
रहा था।)
तृतीय ब्यक्तिः हां, यह सच है। कभी कभी मै भी यही सोचता हूं। इच्छित प्रेम
की प्राप्ति अंततः सानिध्य मात्र रह जाती है।
चौथा ब्यक्तिः काश ! यादों की मधुमक्खियों के छाते को डीडीटी डाल कर नष्ट
किया जा सकता और जब जी चाहे मछली पकड़ने वाली बंसी से पकड़ कर वापस मन
मस्तिष्क पर लाया जा सकता ............................. ।
......................................... समाप्त ....................................