असमीया कहानी
लेखिका – हृदि बरुआ
अनुवादक – नागेन्द्र शर्मा
परिचयः
नाम – मयूराक्षि दत्त
छद्म नाम – हृदि बरुआ
शिक्षा – एम.कॉम.(एकाउण्टेंसी)
प्रकाशित कहानियाँ – ‘प्रेम’र ए-दिन,’ ‘निशा’र बन नहरू’र सुवास’,
‘कथ्य-अकथ्य’ और ‘फागुन’र रंग’
प्रकाशनाधीन – दो कहानी संग्रह।
प्रस्तुत कहानीः ‘प्रस्तुति’ अखिल असम कहानी प्रतियोगिता मे तृतीय।
नाईटी खोलो। प्रणय के इस अप्रत्याशित आदेश पर रीनी को हैरानी हो रही थी।
यह प्रणय को एकाएक क्या हो गया है।
यहाँ ! इस वक्त ! पागल तो नहीं हो गये हो। टीवी सें नजरें उठा कर रीनी ने
प्रणय की ओर हैरानी से देखा। एकाएक उसे याद आया प्रणय ने रात को उसे कई बार
झकझोर कर जगाने की कोशिश की थी। लेकिन उस समय प्रणय को जान बूझ कर टाल दिया
था। कहीं..........
एकाएक प्रणय उठा और वारड्रॉप से साफ धुली हुई नाईटी रीनी की ओर फेंक कर
बोला – भीतर जाकर यह गंदी नाईटी खोलो और यह साफ धुली हुई पहनो। क्या अजीब
औरत हो तुम भी। बङी सुबह स्नान ध्यान किया और फिर वही बासी और गंदी नाईटी
पहन कर निपटा लिया। शाम हो गई, अंधेरा भी होने को है और दिन भर से इसी मैली
कुचेली नाईटी को पहने हुए हो, जाओ चेंज करो। बेड रुम मे जा कर अपने और
बच्चों के कपङे ला कर प्रणय ने टीवी रुम मे रखी लॉण्डरीबकेट मे डाल कर आवाज
लगाई – चेंज कर ली है तो ले आओ अपनी बासी नाईटी। रीनी ने इस बीच साफ और
धुली हुई नाईटी पहन ली। उतारी हुई नाईटी लॉण्डरीबकेट मे डाल कर पूछा – कहां
ले जा रहे हो इन बिना धुले कपङों को ?
धोने ले जा रहा हूं, और कहाँ।
क्या तुमने कभी कपङे धोएं भी हैं जो इस रात के समय कपङे धोने चले हो ?
रीनी ने प्रणय के हाथ से बकेट लेना चाहा। हाथ छोङो, आज मै ही कपङे धोऊंगा।
सुबह सुबह नहा-धोकर भोजन के बाद तुरन्त ऑफिस जाने वाला आदमी रात को कपङे
नही धोएगा तो कब धोएगा। रीनी से हाथ छुङा कर प्रणय बकेट लेकर रसोई घर के
सामने वाले बरामदे के पास बॉथ रूम मे रखी वासिंग मसीन की ओर चला।
धुलने वाले कपङों को एक प्लास्टिक की बाल्टी मे डाल कर रख दिया जाता था
जिसको रीनी ने लौण्ड्रीबकेट का नाम दे रखा था। आज प्रणय ने बकेट मे रखे
गंदे कपङों के अतिरिक्त और भी बहुत सारे धुलने लायक कपङे थे उन सबको एक साथ
बकेट मे मे डाल कर धोने ले गया। यहां तक कि रीनी की नाईटी तक पर उसकी नजर
चली गई। वह कुछ भी समझ नही पा रही थी कि आज प्रणय ऐसा क्यों कर रहा है।
उससे अनजाने मे हुई किसी गलती का गुस्सा तो ब्यक्त नहीं हो रहा। नारी को
समाज मे बराबर की मर्यादा मिलने की बात की जा रही है पर वह अपने परिवार मे
ही पति के सामने कितनी लाचार है। रीनी शिक्षिता है पर आज अपने पति के इस
आकस्मिक आचरण की वजह पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। बल्कि अपने आपको
ही टटोल कर सोच रही है कि कहीं उससे ही अनजाने कोई गलती तो नही हो गई जिसका
प्रतिफलन इस रुप मे हो रहा है। एक बैंक के कर्मचारी उसके पति प्रणय ने शादी
के बाद घरेलु काम कभी नहीं किया। हां, कभी कभी अपने कपङों के साथ बच्चों की
यूनिफॉर्म भी इस्त्री कर दिया करता था। इसके अलावा सात वर्षीय सानी और तीन
वर्षीय लूना को स्कूल ले जाना और लाना, परचून की दुकान से प्रयोजनीय सामान
खरीदना और फोन व बिजली के बिल भरना ये सारे काम प्रणय किया करता है। रीनी
सोच रही थी, आज प्रणय को हो क्या गया है। रात को भोजन के बाद बच्चों को
सोफे पर लिटा कर रीनी टीवी देख रही थी। थोङी देर मे बच्चों को सोफे पर ही
नींद आ गई। हर रोज तो दोनो सोये बच्चों को उठा कर रीनी ही बेडरुम मे सुलाने
ले जाया करती थी। आज प्रणय ने बच्चों को एक एक कर गोद मे लिया और बेडरुम मे
सुला आया।
सुबह उठ कर रीनी ने देखा कि प्रणय अपने बिस्तर पर नहीं है। इतनी जल्दी तो
वह कभी नही उठता, आज उठ कर कहां चला गया। रोज तो वह चाय बना कर डाईनिंग
टेबल पर रख कर उसे जगाया करती है। हाथ मुंह धो कर वह चाय की चुस्कुकियां
लेता रहता है। ‘खाना बन गया है’ यह आवाज सुनने के बाद ही वह नहा धो तैयार
हो बच्चों को ले कर ऑफिस के लिए रवाना होता है। वर्षों से यही प्रणय की
दिनचर्या रही है। लेकिन आज एकाएक यह परिवर्तन क्यों। काफी सोच विचार करने
के बाद भी इसका कारण समझ मे नहीं आ रहा था।
दूसरे दिन भी वही क्रम। आज देखा कपङे धो कर सुखाने के बाद प्रणय किचन मे
खुटर खुटर कर है। रीनी ने जा कर देखा, चारों तरफ सामान बिखरा पङा है। कपङों
पर तेल और हल्दी के दाग। सारे मसाले इधर उधर बिखरे पङे हैं। प्याज के छिलके
वासिंग बेसिन मे पङें हैं तो अंडो के छिलके हवा के झोंको से उङ कर बरामदे
तक बिखरे हैं। कङाही मे दाल उबल रही है। गैस पर दूसरी तरफ पतीली मे पक रहे
चावल से खुशबू आ रही है। मटर आलू की सब्जी तैयार तो है पर उसमे पानी इस तरह
डाला गया है कि वह सब्जी नही दाल नजर आ रही है। तरतीब से रखे मसालों के
डिब्बों का बुरा हाल है। रसोई घर का का यह हाल देख कर उसको एक तरह से चक्कर
सा आने लगा। प्रणय खाना बनाने मे इतना ब्यस्त था कि उसे ध्यान ही नही रहा
कि रीनी किचन के सामने दरवाजे के पास खङी है। प्रणय की ब्यस्तता देख कर
रीनी का यह पूछने का साहस भी नही हुआ कि यह सब क्या हो रहा है। वह झल्ला कर
बिना कोई प्रतिक्रिया जाहिर किये डाइनिंग टेबुल के पास रखी कुर्सी पर बैठ
कर फिर सोचने लगी कि प्रणय यह सब क्यों कर रहा है। थोङी देर बाद देखा कि
प्रणय ट्रॉली पर चार प्लेट मे खाना परोस कर बच्चो को डाइनिंग टेबुल पर आने
की आवाज देते हुए आ रहा है। रीनी चुपचाप और चकित थी। उससे न कुछ कहते बन
रहा था और न कोई पूछते। वह तो बैठे बैठे यही सोच रही थी कि सब लोगों के
बाहर चले जाने बाद वह गंदा हुआ किचन कैसे साफ करेगी।
दोपहर को प्रणय ने फोन किया।
रीनी, आज बच्चों को स्कूल से तुम ले आना, मुझे ऑफिस मे आज अधिक काम होने के
कारण समय पर पहूंच नही पाऊँगा। बच्चे परेशान होंगे।
मै ? क्यों रोज तो तुम लाया करते हो, आज क्या हो गया। हुआ कुछ नहीं। तुम
तैयार हो जाओ तुम्हारे पास अभी भी डेढ धंटे का समय है।
मै कैसे लाऊँगी, तुम्हे तो रोज गाङी से स्कूल के सामने से ही आना होता है।
ठीक है, तुम ऑटो ले कर चली जाना और फोन डिसकनेक्ट हो गया। रीनी के मन मे
वही पहेली प्रश्न बन कर दस्तक देने लगी। प्रणय को आखिर हो क्या गया है।
बच्चों को पहूंचाने अथवा लाने आज तक नहीं गई। लेकिन अन्य कोई राह भी तो नही
है। प्रणय की दैनिक मौन परिवर्तित गतिविधि को देख कर कोई सवाल भी तो नहीं
किया जा सकता। जल्दी जल्दी सलवार सूट बदली और साङी पहन कर निकल पङी।
प्रणय के घर आने के पहले ही बच्चों को ले कर रीनी घर पहूंच गई। थोङी देर
इंतजार करने बाद प्रणय भी घर पहूंच गया। आज वह थका थका सा लग रहा था। चेहरे
पर कुछ ङदासी भी थी। चेज करने के बाद सोफे पर पसर गया। रीनी एक ट्रे मे चाय
लाकर उसके सामने रखते हुए पूछा – क्यों क्या बात है आज कुछ उदास और थके से
लग रहे हो। नहीं ऐसी कोई बात नहीं, बस जरा ऑफिस मे काम ज्यादा करना पङा
इसीलिए थकावट महसूस हो रही है।
अच्छा ठीक है, आज हमारे पास वाले मैदान मे आयोजित होने वाले नाटक दल का
पहला नाटक होगा। चलोगे न ? नहीं आज मेरी जाने की इच्छा नही है। तुम बच्चों
को ले कर चली जाओ और हां मेरी टेबुल पर रखी डायरी मे बिजली और फोन के बिल
रखें हैं। उनके साथ ही परचून वाले का बिल भी है। नाटक के लिए निकलने के
पहले डायरी मे से सारे बिल निकाल तुम अपने हाथ से कहीं रखते जाना। कल जब
बच्चों को स्कूल छोङने जाओ तो बिल भी पेमेंट करने के लिए लेते जाना। बिजली
और फोन के पेमेंट की कल ही लास्ट डेट है। मै कल देर से उठुंगा। ऑफिस का
बहुत सारा काम पेडिंग है रात भर करना होगा।
प्रणय के द्वारा आज सुबह किये गये आकस्मिक ब्यवहार से रीनी बिफरी हुई तो थी
ही। प्रणय, तुम समझते क्या हो अपने आप को। आखिर मुझसे ऐसी क्या खता हो गई
जिसकी मुझे सजा दी जा रही है। जो काम वर्षों से मै करती आ रही हूं उन सभी
कामो को तुम करने लगे हो और जो काम तुम्हारे करने के हैं – बच्चों को स्कूल
छोङना – लाना, बिल भरना, मारकेटिंग करना आदि वे सारे काम आज कल किसी न किसी
बहाने मुझसे कराने लगे हो। आखिर तुम चाहते क्या हो। तुम्हारे इस परिवर्तन
के पीछे भावना क्या है ...... कहते कहते रीनी सुबक सुबक कर रो पङी। सुनो
रीनी, तुम औरतों के साथ यही प्रोबलम्ब है। कोई भी बात समझने की कोशिश नहीं
करती। मुझे नहीं करनी कोशिश ..... कह कर रीनी बेड रुम की ओर जाने लगी।
प्रणय ने उसका हाथ पकङ कर बैठा लिया। टीवी पर चेनल बदल कर कहा देखो – आज
शहर मे कितना बङा बम विस्फोट हुआ है। वह औरत कैसे छाती कूट कूट कर रो रही
है। जमीन पर पङी खून से लथ-पथ उस लाश को देखो, कितना दर्दनाक है यह हादसा
और रीनी, यदि तुम यह सोचती हो कि यह पहला और आखिरी हादसा है, तो तुम गलत
हो। आज कल ऐसे हादसे आये दिन होते रहते हैं और आगे भी होते रहेंगे।
गुवाहाटी (असम) की गणेशगुङी एरिया मे अक्टोबर 2008 के बम विस्फोट के उस
भयावह हादसे को भूल गई।प्रणय उठ कर आलमीरा से एक एलबम लाकर रीनी को दिखाने
लगा। यह देखो विस्फोट मे घायल और खून से लथ-पथ एक निरीह यवक को दो पुलिस
वाले कैसे लटका कर ले जा रहे हैं। मां का एकलौता बेटा यह युवक फुटपाथ पर
बैठ कर जूते पॉलिस करके अपना और अपनी बुढी मां का पेट पालता था। बम विस्फोट
करने वालों से कोई यह पूछने वाला नहीं कि इस बेसहारा मजदूर यवक का कसूर
क्या था। यह देखो एक ठेला गाङी मे कैसे लाशों को ढो कर लाया जा रहा है।
इतना बेरहम कृत्य देख कर भी क्या तुम्हे नही लगता कि आज हिंसा जर्जरित
हमारे राज्य असम मे किसी के साथ भी यह हादसा हो सकता है। ऐसे मे क्या यह
उचित नहीं कि इस स्थिति मे हम भी अपने भविष्य के बारे मे कुछ सोचें। जो
अपने भावी जीवन के बारे मे कल्पना नहीं करता उसे किसी भी समय मुशीबत का
सामना करना पङ सकता है। प्रणय के द्वारा की गई बम विस्फोटों की चर्चा और
इनमे मरने व घायल होने वालों की कारुणिक कहानी से रीनी भी एक तरह की
अब्यक्त आशंका मे उतरती चली गई। लेकिन वह फिर भी यह समझ नहीं पा रही थी कि
प्रणय उसके सामने आखिर दोहरा क्यों रहा है। लोग तो उन हादसों को भूल भी
चुके हैं। राज्य का जन-जीवन भी सामान्य हो चला था। लेकिन इन सारे हादसों को
लेकर प्रणय एकाएक गंभीर क्यों हो रहा है।
रीनी एक आशंकाभरी उदासी के साथ वहां से उठ कर किचन की ओर गई। काम करने वाली
मेहरी सारा काम निपटा कर जा चुकी थी। जो कुछ रह गया था उसे करके किचन बंद
किया और आवाज लगाई – मै सोने जा रही हूं ...... कहते कहते प्रणय के पास आ
गई। नहीं रीनी अभी नहीं, कोई ज्यादा वक्त नहीं हुआ है, बैठो आज तुमसे कुछ
जरुरी बातें करनी है। रीनी ने देखा कि प्रणय अपने हाथ मे कुछ कागजात लिए
हुए है और लग रहा है जैसे किसी गहरे सोच मे डुबा हुआ है। रीनी का हाथ प्यार
से सहलाते हुए अपने हाथ मे ले कर बोला – रीनी, आज मै तुम्हे जीवन के वास्तव
से रुबरु कराना चाहता हूं। हमारे राज्य असम मे अलगाववादियों की बंदूकें और
राष्ट्र सुरक्षा बलों की बंदूकें एक दूसरे के सामने तनी हुई है। ऐसे मे कभी
भी और किसी के साथ कुछ भी हो सकता है। इसलिए हर एक को किसी भी तरह की
विपरीत स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। यह देखो ये तुम्हारे
और मेरे जीवन बीमा के कागजात हैं। इस फाइल मे पॉलिसी और प्रिमियम की रसीदें
हैं और हां, डेथ सर्टिफिकेट कैसे और कहां से ली जाती है वह मै तुम्हे पहले
ही बता चुका हूं।
प्रणय, अब बस भी करो, इन उलूल-जुलूल की बातों की मे मेरी कोई दिलचस्पी
नहीं। पता नहीं तुम्हारे दिमाग को क्या हो गया है। उन हादसों के बाद राज्य
का जन जीवन तो बिल्कुल सामान्य हो गया है और तुमने उन घटनाओं की तस्विरों
को अपने दिमाग की फाइल मे ‘copy past’ कर रखा है। रीनी ने आवेश मे आ कर
इतनी बातें कह तो डाली लेकिन एक अज्ञात आतंक उसके भी दिलो दिमाग पर छा गया।
परिवार मे किसी को भी कुछ हो गया तो उस सदमे को कैसे झेलेगी। चाह कर भी वह
आंसुओं को रोक नही पाई। भरे पुरे परिवार के साथ साथ आज उसके पास सब कुछ तो
है। पति की ऊँचे पद की नोकरी, गाङी और रहने को बंगला आदि क्या नहीं है।
रीनी इनमे किसी एक को भी खोना नहीं चाहती। वह जानती है कि मृत्यु जीवन की
सबसे बङी सच्चाई है लेकिन इस सच्चाई का सामना करने की वह कल्पना भी नहीं कर
सकती। पर प्रणय मे इतना साहस कि वह उसके लिए स्वयं को तो प्रस्तुत कर ही
रहा और साथ साथ रीनी के सामने भी इस सच्चाई को बेझिझक रख रहा है। कैसा
फौलादी है इस आदमी का दिल। रीनी सुबकती हुई प्रणय के पास आ कर बैठ गई।
रीनी, रोना ठीक नही। किसी कङवे सच को जान लेने के बाद रोना एक तरह से
कमजोरी जाहिर होती है बल्कि हमे सोचना चाहिए कि हमे जीवन मे आने वाली किसी
भी विपरीत हालात का सामना कैसे करना है। जीवन मे क्या कुछ होना है उसको
विधि ने पहले से तय कर रखा है। उसको बदलना इन्सान के हाथ मे नहीं है। लेकिन
फिर भी मानव होने के नाते हमारे कुछ कर्तब्य हैं यह भूलना नहीं चाहिए। क्या
डर डर कर जीना उचित है ? अपने पुण्य कर्मो से हमे जो मानव जीवन मिला है उसे
हमे हंसते-खेलते और खुशी मनाते हुए गुजारना चाहिए। इस तरह इन आतंकवादियों
को हमे यही मेसेज देना है कि गोलियों से या बम विस्फोटों से तुम लोग कुछ
लोगों की जाने ले सकते हो लेकिन भगवान की रचना इस संसार को निःचिन्ह नहीं
कर सकते। वे सोचते हैं कि उनके आतंक से डर कर हम लोग घर मे दुबक कर बैठ
जायें। भयाक्रांत हो कर पंगु बन जायें। लेकिन रीनी, हम उनकी मंसा पूरी नहीं
होने देंगे। पर रीनी का इन बातों का कोई असर नहीं हुआ और वह और भी जोर से
रोने लगी। मां का रोना सुन कर सानी और लूना भी नींद से उठ कर दौङ आये। रीनी
को और दोनो बच्चों को प्रणय ने अपनी बाहों मे ले लिया। प्रणय की आंखें भी
डबडबा आई। पर इस तरह के गंभीर और गमगीन वातावरण के बावजूद प्रणय ने रीनी से
फिर एक बार पूछ लिया – ‘डेथ सर्टिफिकेट ..... प्रणय की बात पूरी होने के
पहले ही रीनी ने उसके मुंह पर हाथ रख कर आगे उसको कुछ बोलने नहीं दिया।
अनुवादक – नागेन्द्र शर्मा