ले.अनुराधा शर्मा पुजारी
अनु. नागेन्द्र श
---------- बिना किसी से कुछ पूछे भरी दो पहरी मे मेरे घर के पिछवाड़े
दनादन चले आ रहे हैं,आखिर आप हैं कौन ? महिला के आतंकित चेहरे को देख कर
आगंतुक ने सहज भाव से मुस्कुराते हुए कहा, ----------- मेरा ख्याल है आपकी
उम्र साठ के आस पास होगी, मै भी आपका समवयस्क हूं। इसलिए आपके साथ मुझसे
किसी प्रकार की दुषित मनोवृति वाले व्यवहार की आशंका आपको नहीं होनी चाहिए।
----------- लेकिन फिर भी एक अपरिचित आदमी .........
------------ ऐसा लगता है उम्र के इस पड़ाव पर भी आप यौवन-शुचिता की
मानसिकता से मुक्त नहीं हो पाई हैं। आपकी और मेरी इस उम्र मे परस्पर मिलने
के लिए दोपहर का समय निषिद्ध कैसे हो सकता है, कह कर वह आदमी मूढ़ा ले कर
बैठ गया। घर पर काम करने वाली आया पिछवाड़े चौताल मे आचार के लिए नींबू काट
काट कर सुखा रही थी। वह महिला उस आदमी की आकस्मिक उपस्थिति पर आश्वस्त नहीं
कर पा रही थी और प्रकारांतर से यह समझाने की कोशिश कर रही थी कि उसका इस
तरह से घर के पिछवाड़े चले आना उसे अच्छा नहीं लगा है। महिला की अपने प्रति
उदासीनता को महसूस करते हुए भी निहायत अपनापन दिखलाते हुए उसने कहा – मै
काफी दिनो से देखते आ रहा हूं कि आपके घर के पिछवाड़े बहुत देर तक अच्छी
खासी धूप रहती है और उसके बाद अपने घर की ओर इशारा करते हुए बतनाया कि
इटालियन टाइल्स के छप्पर वाला जो असम टाइप मकान दिखलाई पड़ रहा है वहीं मै
रहता हूं। सुबह सुबह बरामदे मे कुछ देर के लिए धूप आती है, दोपहर को तो धूप
का नाम नहीं रहता। मकान के पास एपार्टमेंट क्या बना, मेरे घर की धूप छिन
गई।
--------------- उस घर मे आप किसके साथ रहते हैं ------ मेरा मतलब है, घर
मे और कौन कौन हैं। महिला की रुखाई कम होती जा रही थी। महिला के व्यवहार मे
कोमलता आई जान कर उस आदमी ने कहा –
--------------- खड़ी कब तक रहेंगी, कोई कुर्सी-उर्सी ला कर बैठ जाईए, कुछ
देर बातें करके समय गुजारते हैं। मै जाने वाला नहीं, कम से कम आधा घंटा
यहां बैठ कर धूप लूंगा। मेरे घर का तो हर कमरा ठंडा और सीलन भरा है, मुझे
बिल्कुल बरदास्त नहीं होता। रोज सोचता यहां चला आऊँ लेकिन आपके घर के गेट
पर बड़ा सा लगा ताला देख कर लौट जाया करता। शायद आपको आये ज्यादा दिन नहीं
हुए, कहां थी अब तक ?
महिला स्वयं जा कर एक बैंत की कुर्सी ला कर बैठ गई और धीरे धीरे बताने लगी
– हम लोग बड़ोदा मे थे। मेरे पति एक तेल कंपनी मे मुलाजिम थे। अपने
सेवा-काल मे ही वहां एक फ्लेट खरीद लिया था। आज से करीब चार साल पहले यहां
आये थे और सस्ता मिलता देख कर इस घर को भी खरीद लिया। बड़ोदा मे काफी लम्बे
समय तक रह लेने के कारण मै वहां से अभ्यस्त हो गई और इसलिए यहां मकान
खरीदना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं था। यहां घर लेने को लेकर हम दोनो मे तकरार
भी हुई थी, कहते हुए महिला एकाएक उदास हो कर मौन हो गई।
मेरे साथ बिल्कुल वैसा तो नहीं पर लगभग ऐसा ही हुआ था। बेटी विदेश पढ़ने गई
और वहीं किसी साहब से शादी कर वहीं बस गई। बेटे का जॉब बंगलोर मे था। वह भी
वहीं शादी रचा कर वहां का हो गया। अपर असम के एक कॉलेज मे प्रिंसिपल के रुप
मे कार्य करते हुए अभी तीन साल पहले ही सेवा निवृत हुआ हूं। दो साल पूर्व
पत्नी का देहांत हो गया।
मै जब नोकरी पर बहाल था उस समय बेटा-बेटी के कहने पर बैंक से लॉन लेकर यहां
मकान बना लिया। इसके लिए पुरखों की जमीन भी बेचनी पड़ी। बेटा बेटी का कहना
था कि यदि मकान बनाना ही है तो महानगर मे बनाना होगा। जमीन तो मैने मित्रों
के कहने पर बीस साल पहले ही ले रखी थी। उस समय तो इस जमीन पर दिन मे भी
सियार हुआ-हुआ किया करते थे। मैने तो ऐसी जमीन पर मकान बनाने की कल्पना भी
नहीं की थी। -------- मैने भी तो कभी सोचा ही नहीं था कि यहां आकर रहूंगी।
मेरे पति दूरदर्शी थे। मकान थरीदने के लिए मेरे मना करने पर उन्होने कहा था
– हो सकता है हमे बड़ोदा छोड़ना पड़े, हमारा अपना मकान रहेगा तो आ कर रह
लेंगें और फिर यहां पर तुम्हारे भाई बहन और अन्य लोग भी तो रहते हैं उनसे
भी तो मिलना जुलना होता रहेगा। आखिर वही हुआ। वे तो नहीं आये उनका दो साल
पहले देहांत हो गया। क्या करती मै ही यहां रहने चली आई।
महिला का संक्षिप्त आत्म कथ्य सुन कर भी कोई प्रतिक्रिया ब्यक्त न करते
उसने हुए कहा -----
मै बेवक्त आ गया था, अब चलूं, आप भी भोजन करें। मै ग्यारह बजे ही भोजन कर
लेता हूं, यह मेरी आदत ही है।
--------- अब आ ही गयें हैं तो कम से कम चाय पी कर तो जाईए। आपको देखते ही
पता नही क्या क्या उल्टा सीधा कह गई, माफी चाहती हूं। दरअसल मालुम ही नहीं
था कि आप मेरे पड़ोसी हैं। चाय मे चीनी तो लेते होंगें, शायद।
------- हां, अभी तक तो लेता हूं,, पर चाय न भी हो तो चलेगा। आप चीना लेती
है ?
-------- डायबिटीज हुए दो साल हो गये, आर्थराइटीज भी
---- और हर्ट, हर्ट तो ठीक है ?
------- ठीक ही होगा शायद, दो साल पहले एनवल चेक अप करवाया था उस समय
रिपोर्ट ठीक ही थी।
------ मेरे हर्ट को कोई भरोसा नहीं है, हाई ब्लडप्रेसर है, आई मे गो एनी
टाइम, उसने हंसते हुए कहा। महिला ने आया को दो कप चाय बनाने के लिए कहा।
------ ऐसी बीमारी जिसके पीछे ‘टीज’ नाम की पूंछ लगी हो उनसे निरामय होने
के लिए सावधान रहने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है, जैसे - साइनाटाइज,
डायबिटीज, आर्थराइटीज, टोनसिलाइटीज इत्यादि। ये आसानी से ठीक नही होती, ये
हमला करने की ताक मे ही रहती हैं। अतः जहां तक हो सके इनसे सावधान रहें।
--------- आपको देख-सुन कर लगता नहीं कि आप कभी किसी कालेज मे अध्यापक रहे
हों, महिला ने हंसते हुए कहा।
---------- क्यों, मै तो प्रिंसिपलगिरी से सेवानिवृत हो चुका। हां, यह ठीक
है कि मै अपने जीवन को कभी अनुशासित नहीं कर पाया, क्या गलत है और क्या सही
यह भी नहीं समझ पाया। यहां तक कि मै अपने बच्चों को भी सही दिशा-निर्दश
नहीं दे पाया। वस्तुतः हमारे वश मे कुछ नहीं है। आदमी की उम्र, आचार विचार
सब कुछ वक्त के आधीन है।
-------- लेकिन एक बात है, आपको बातें बनानी बखूबी आती है, महिला ने हंसते
हुए कहा।
--------- हां, मै आपको बताना चाहता हूं कि मै बेपरवाह अध्यापक था और आज भी
किसी बात की परवाह नहीं करता।
------- यह तो मै आपके बताए बिना ही समझ चुकी, वर्ना आप इस तरह थोड़े ही
यहां आ पाते। उसकी चाय मे आधा चम्मच चीनी डाल कर कप मे चम्मच हिलाते हुए
विनोद करने के लहजे मे कहा। वह मुस्काराया भर लेकिन कहा कुछ नही। चाय पीने
के बाद कहा, आपको मैने बेवक्त आकर परेशान किया, इसके लिए क्षमा चाहूंगा।
-------- मै साढे बारह बजे भोजन कर लेती हूं क्योंकि खाने के पहले मुझे
इन्सुलिन लेनी पड़ती है।
तब तो आप सोईए या फिर टी वी देखते हुए आराम कीजिए। हमारे घर के पास ही एक
खुला मैदान है वहां कुछ लड़के फुटबॉल खेलते हैं और मै ही उनके खेल का एक
मात्र दर्शक हूं। यदि नहीं गया तो बुरा मान जायेंगे। गेट बंद कर वह पीठ
घुमा कर जा ही रहा कि महिला ने बड़े आग्रह पूर्वक कहा – फिर आईयेगा धूप
लेने।
दिसम्बर मे शीत पा कर पेड़ों के पत्ते पीले पड़ गये थे। बारिश होने के कारण
ठंडक कुछ ज्यादा ही हो चली थी। महिला के घुटने मे दर्द कुछ और बढ़ गया। उस
आदमी ने आना जाना जारी रखा। दोनो के बीच नजदीकियां बढ़ती चली गई और कुछ
दिनो के बाद तो फासला इतना कम हो गया कि महिला के दुखते घुटने और पीठ पर
हॉट वाटर बेग देने मे न तो उस आदमी को संकोच हो रहा था और न महिला के मन मे
कोई झिझक थी। दोनो एक दूसरे के प्रति सहज हो चले थे।
जनवरी के प्रथम सप्ताह मे उसने कुछ ग्रीटिंग कार्ड और एक शिशु की फोटो
महिला को दिखलाया। उसके पीछे लिखा था – ‘पापा, अप्रेल के बाद आपको लेने
आउँगी, रेडी रहें। आपकी – हिया। मै उसे हिया कह कर पुकारा करता था, बड़ी
नटखट और शरारती थी। बहुत बाते करती थी। पर आज उसके पास शब्दों और समय दोनो
का अभाव है।
महिला पूरी कोशिश के साथ उठी और लंगड़ाते लंगड़ाते अपने कमरे मे जा कर एक
शॉल ले आई। ‘यह मेरे बड़े लड़के की बहू ने भेजा है। मेरा छोटा भाई गया था
उनके पास, आते समय उसी के साथ भेज दिया।
---- वाह ! कितनी बढिया शाल है, इसे देख कर लगता आपकी बहू की तकदीर अच्छी
है।
---- मराठी लड़की है, बड़ी ही सुसांस्कृतिक।
---- आप उनके साथ क्यों नहीं रही।
---- आप क्यों नहीं अपनी बहू बेटे के साथ रहे। आपने ही तो कहा था कि वे
आपकी अच्छी देख भाल किया करते थे।
----- यदि आप अपने बहू बेटे के साथ रहती तो क्या वे आपकी देखभाल नही करते ?
लेकिन हमे भी तो समझना चाहिए कि उनका भी अपना एक संसार है, वे भी तो अपनी
एक प्राईवेट लाइफ जीना चाहते हैं। हमे कोई हक नही बनता कि हम उनकी प्राइवेट
लाइफ मे रोड़ा बन कर रहें। अतः कभी कभी लगता है कि उनके संसार मे हमारा कोई
प्रयोजन नही है, उनके बीच एक यदा कदा अपने आपको अपरीचित सा महसूस होता है
और जैसे हम उन पर बोझ स्वरुप हैं। हो सकता है यह धारणा मात्र हो,
वास्तविकता नहीं। लेकिन एक तरह का अपराधबोध होता रहता है।
महिला ने इस विचारधारा को आत्मसात तो किया पर कोई प्रतिक्रिया ब्यक्त नहीं
की। अपनी शॉल को इधर से उधर लपेटते हुए कहा – मेरे छोटे बेटे ने मुझे
देहरादून बुलाया है लेकिन मै नहीं जाउँगी।
----- क्यों ? आप तो कह रही थी कि पिछले चार माह वहां रही और बड़े सुख मे
रही।
--- हां, सुख था पर सुकून नहीं था। मुझे लगता था जैसे मुझे चार माह तक सुख
देने के लिए पूरे वर्ष भर उन्होने कहीं ट्रेनिंग ली हो। सब कुछ घड़ी के
कांटे की तरह चल रहा था। चाय, भोजन, दवा, इन्सुलिन आदि सब कुछ तय वक्त पर
होता रहता। मालिस के लिए एक छोटा लड़का नियुक्त था। क्लब आदि से वे लौटते
तो अपने जूते- सैंडिल हाथ मे लेकर बिना कोई आवाज किए घर मे प्रवेश करते
ताकि मेरी नींद मे खलल न पड़े। इस तरह मेरा पूरा ख्याल रखा जाता था। लेकिन
फिर भी मुझे सहजता महसूस नही हो रही थी। लगता था जैसे उनकी दिनचर्या मेरे
पर ही केन्द्रित है। मै नहीं होती तो शायद वे मुक्त हो कर परस्पर चुम्बन
लेते। पति-पत्नी के बीच झगड़ा होता और फिर सुलह। उसके बाद जहां दिल जाता एक
दूसरे से लिपट कर सोये रहते। यह सोच कर लगता जैसे मै उनके मुक्त जीवन मे एक
तरह से बाधा स्वरुप हूं। ये सारे विचार मुझे हर वक्त कचौटते रहते।
वह ब्यक्ति जोर से हंस पड़ा।
----- क्यों हंस दिए, इसमे हंसने वाली कौनसी बात है।
----- आप बड़ी रोमांटिक महिला हैं। आपने अपने पति के साथ बड़े रोमांटिक
जीवन बिताया होगा शायद। (pendrive)
महिला के झुर्रियों भरे मुख मंडल पर लज्जा की लाली छा गई।
नही, ऐसी बात नहीं। दरअसल मेरे पति को काफी ब्यस्त रहना पड़ता था। वैसी
ब्यस्तता मे रोमांच का कोई स्थान नहीं रहता।
------ आप बड़ी संवेदनशील हैं और इसलिए एक सीमा तक आप मे आत्मसम्मानबोध
काफी है।
----- यह तो मुझे मालुम नहीं लेकिन कुल मिला कर मै यहीं ठीक हूं। वह मानो
उस ब्यक्ति से अपने आपको छुपाना चाहती हो।
फरवरी का महीना, पेड़ों पर से पीले पत्ते झड़ गये और पेड़ों की सिर्फ
डालियां और तने ही दिखलाई दे रहे थे। हठात् दो दिनों तक वह ब्यक्ति महिला
के पास नहीं आया। उसके घर का फोन भी खराब था। महिला रह नहीं पायी और उसके
घर गई, देखा कि वह एक भारी सी लेप ओढ़े सो रहा है। घर मे काम करने वाले
लड़के ने कहा – दो दिन से बुखार है, कुछ भी खाया पीया नहीं है। कुछ खाने
पीने की बात करते ही गुस्सा हो जाते हैं।
---- बड़े अजीब आदमी हैं आप, मुझे खबर क्यों नहीं दी।
----- तुम्हारे पैर का दर्द ठीक हो गया ? उसने धीरे से पर बड़े स्नेह भाव
से पूछा।
महिला कुछ देर तक चुप्पी साधे रही। फिर उसने अपना हाथ उसके माथे पर रखते
हुए पूछा अब कैसा लग रहा है। ब्यक्ति ने आंखें मूंद ली। इस तरह कुछ समय
गुजरा। दोनो की आंखे नम थी पर दोनो ही जैसे नमी को छुपाने की कोशिश कर रहे
थे। घर मे काम करने वाले लड़के से गर्म पानी लाने के लिए कहा और खुद रसोई
घर मे जा कर कुछ बना लाई और आग्रह पूर्वक जबरन खिलाया। पत्नी के मरने के
बाद ऐसे क्षण उसके जीवन मे कभी नहीं आये। गालों पर बह कर आये आंसू यही भाव
ब्यक्त कर रहे थे।
इस तरह तीन दिन पार हो गये। चौथे दिन सुबह सुबह वह महिला के घर की ओर आते
समय मदार के पेड़ के नीचे लाल लाल फूल देख कर कुछ बटोरे और महिला के बरामदे
मे आ पहूंचा।
----- अरे, तुम क्यों आये, मुझे बुला लिया होता।
----- कल रात तुमको सपने मे देखा था, उसने हंसते हुए कहा। सुन कर महिला के
गालों पर युवती सुलभ लाली छा गई।
---- तुम्हारे पैर का दर्द ठीक हो गया ? ---- तुम्हारे घर आते जाते मुझे
अपने पैर के दर्द का अहसास ही नहीं रहा। ----- तब तो मुझे बुखार आते रहना
ही ठीक होगा। ------ इस बार नहीं जाऊँगी। कितने केयरलेस हो तुम। बारिश मे
भीजते भीजते मैच देखने की भला तुम्हे क्या जरुरत थी। परस्पर ‘आप’ कहने की
औपचारिकता से निकल कर कब ‘तुम’ पर आ गये दोनो को ही ज्ञात नहीं रहा। आत्मिक
प्रेम की सीमा मे प्रवेश हो जाने के बाद ‘आप’ शब्द की औपचारिकता नहीं रहती।
ये सब आपको किसने बतलाया। वो बदमाश मदन कम नहीं है, उसी ने बतलाया होगा, आज
ही खबर लेता हूं उसकी।
----- मदन को बुरा भला कहने से कोई फायदा नहीं। मुझे मदन से मालुम हुआ है
कि तुम सुबह सुबह तीन सिगरेट पी जाते हो। आज से यह सब नही चलेगा। अब मै
जैसा कहूंगी वैसा ही होना होगा। आज भोजन तुम यहीं करोगे। रात के लिए टिफिन
मे डाल दूंगी।
दोनो को महसूस हो रहा था कि वे एक दूसरे के बहुत निकट आते जा रह हैं और
उनमे एक उर्जा का संचार हो रहा है। जहां दोनो ही एकाकी जीवन से मुक्ति पाने
के लिए मरने की इच्छा रखते थे वहीं अब जीना चाहते हैं।
मार्च की पहली वर्षा की दोपहरी मे एक दिन उसने महिला से पूछा –
कहीं बाहर घूमने चलोगी ? कहां, महिला ने विष्मय से पूछा।
जयपुर। क्यों, वहां तुम्हारा कोई अपना है ?
नहीं, कोई नहीं। यहां बहुत ठंडक है इसलिए तुम्हारा दर्द तुम्हे ज्यादा
सताता है। जयपुर की आबोहवा तुम्हे रास आयेगी। इस समय वहां मौसम बहुत अच्छा
है।
लेकिन वहां क्यों जांये ? ऐसे ही जायेंगे, वहां कुछ दिन ठहरेंगे, घूमेंगे
फिरेंगे।
दोनो के बीच देर निस्तब्धता बनी रही। चुप्पी भंग करते हुए उसने कहा – तुम
कुछ बोली नबीं, हां या ना मे कोई उत्तर नहीं दिया।
यह भला कैसे मुमकीन हो सकता है, लोग बाग क्या कहेंगें।
----- तुम अपना जीवन कैसे बिता रही हो, वे तथाकथित लोग बाग क्या कभी खबर
लेते हैं ? क्या शारीरिक ब्यधि भोगते हुए ही अपना जीवन समाप्त कर दोगी ?
अपने जीवन पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं ! कब तक लोगों की परवाह करती रहोगी,
आखिर कब तक। सुन कर महिला रो पड़ी लेकिन उत्तर कुछ नहीं दिया।
अप्रेल मे खिले किसी अज्ञात फूल की सुगंध पा कर आधी रात को ही महिला की
नींद टूट गई। कई रात ऐसा होने लगा। उसकी बेटी उसे लेने आई हुई है यह खबर
मिलने के बाद से ही ऐसा हो रहा है। पैर का दर्द भी बढ़ता जा रहा है। बिना
किसी कारण के गुस्सा हो जाती है। ब्लडप्रेसर और सुगर भी बढ़ गया। आखिर एक
दिन बड़ी आतुर हो कर पुत्र से पूछा – ‘बेटे बिहू पर आ रहे हो न’ ?
‘मां, बिहू पर नहीं आ सकता। बिहू के बाद आकर तुम्हे यहां लेते आऊंगा, हम
लोगो को तुम्हारी बहुत चिंता रहती है’। क्या बेटा सचमुच आयेगा ? उसे यकीन
नहीं हो रहा था। उसकी देह कमान की तरह झुकती जा रही थी।
अपनी बेटी के साथ वह आज चला जायेगा। हो सकता लौट कर न भी आये। वह कल भी
नहीं आया, परसों आकर अपने जाने की खबर देने दस मिनट के लिए आया था। खबर दे
कर चला गया। उसके चेहरे पर तो कोई आकुलता का भाव नहीं था। फिर मै क्यों
............ ?
शाम को तीन बजे महिला ने आसमान की ओर देखा। नही, उसका विमान इस आसमान से हो
कर नहीं जायेगा। उसके विमान के लिए कोई अन्य आसमान है उसी से हो कर जायेगा।
वह आकाश उसे यहां से दिखलाई नहीं देगा। महिला का शरीर बुखार से तप रहा है।
वह बिस्तर पर आ कर लेट गई। उसे लगा निःसंगता के चक्रवात मे पड़ कर वह घूम
रही है। गला सूखे जा रहा है। हजारों पक्षी जैसे उसके अन्दर कौलाहल कर रहे
हैं। ऐसा तो अपने पति की मृत्यु के समय भी नहीं हुआ था। हठात् कॉलिग बेल
सुनाई पड़ी। इस समय यह आवाज वह सहन नहीं कर पा रही थी। बिछौने की चद्दर से
उसने सर तक अपना मुंह ढ़क लिया। एकाएक उसे लगा जैसे कोई उसका स्पर्ष कर उसे
सहला रहा रहा है। उसने आंखें खोली, वही ब्यक्ति उसे टकटकी बांधे देख रहा
है। उसे यकीन नहीं हो रहा था। कहीं वह स्वप्न मे तो नहीं।
----- ऐसे बेवक्त क्यों सो रही हो। तुम्हे तो तेज बुखार है। उसने महिला के
माथे पर हाथ रखते हुए कहा।
तुम ! यहां ! महिला ने बिना आंखें खोले ही पूछा।
भला, तुम्हे छोड़ कर जाना मुमकीन है ? विदेश मे तुम्हारे बिना अकेले रहना
मेरे लिए एक तरह की सजा होगी। इसलिए मै नहीं गया। महिला ने उसका हाथ कस कर
पकड़ लिया।
------ चलो अपन जयपुर चलते हैं, महिला ने रुक रुक कर असपष्ट शब्दों मे कहा।
इस प्रस्ताव पर जो सवाल पहले महिला ने उठाये थे वही उस ब्यक्ति ने भी
उठाये।
------ क्यों, जयपुर क्यों चलें।
------ बस, ऐसे ही, वहां रहेंगे और घूमेंगे।
------ इस उम्र मे ! भला, लोग बाग क्या कहेंगे।
------ छोड़ो, लोग बाग हमारे चौकीदार नहीं हैं जो हम पर ही निगाह रखेंगे।
अगर रखें भी तो क्या है, हम लोग जायेंगें।
बैसाख की बयार का एक झौंका खिड़की के परदे को उड़ाते हुए भीतर प्रवेश कर
कमरे को तरो-ताजा कर गया। महिला अब भी उसका हाथ पकड़े हुए थी।