आज का कश्मीर
दुनिया का स्वर्ग कहा जानेवाला कश्मीर
आज व्यापक मनुष्यत्व से वंचित, विकास में
सीमित, जाति -ध्रर्म -वर्ग से है पीड़ित
यहाँ पसरा हुआ है आतंक का गहरा बादल
क्षोभ, शोषण, भ्रम की कालिमा में
डूब गया है, दुर्गेय दया की भूखी चितवन
नव प्रकाश में तमस युगों का करके आयोजन
कहती, अमूर्त जीवन विकास होना,अब है निश्चित
कहा करते थे, जो स्नेह मानव का आभूषण है
स्नेह है जीवन का सार , आज वे ही कहते हैं
आग से आग बनकर मिलो , पानी से पानी
गरल का उत्तर गरल है, ईंट का जवाब पत्थर
मुड़कर मत देखो, कि किसके लहू से लाल
हुई यहाँ की जमीं, किसकी जवानी लूटी गई
कौन अपने माँग का सिंदूर मल-मलकर धो रही
किस माँ का लाल चिता पर जल रहा ,कौन है
वह अभागा पिता जो, छाती – कपाल पीट रहा
घाटी के कोने – कोने में काल जाल- सा
मानव निर्मित अंधियाली रहती छाई हुई
देखकर धरती पर रुधिर कीच
वायु डोलता मलिन होकर ,संध्या रहती उदासीन दुखी
अकथनीय विवशता लोगों की शुष्क आँखों में
तैरती रहतीं, अधरों पर पीड़ा नीरव रोदन करती
हृ्दय क्षितिज रहता तिमिरांकित ,भृकुटी रहती चिंतित
प्रकृति धाम कही जानेवाली यह पुण्यभूमि
आज मानव शोणित से हो रही रंजित
तोपों के गर्जन , बमों की गड -गड़ाहट से
तृण-तरु काँप रहे, खग-वृन्द रहते आतंकित
विमानों से पुष्प नहीं, गिरते हैं बम – गोले
चटक – चटककर , पिघल – पिघलकर मानव
तन की हाड़ -मज्जाएँ वाष्प बन उड़े जा रहे
युगों-युगों से जिस भूमि पर,प्रकृति राशि-राशि
कर अपने रूप -रंग को करती आई निछावर
वहाँ मौत मना रही है, विनाश शताब्दी
प्रेत कर रहा है ताण्डव ,खग रोते हैं तरुओं में
छुप – छुपकर , कंदर्प संग लिपटी रोती अनाथ
दूधमुँही ,भारत के अंचल में लेटकर कश्मीर रोता
राम चरित मानस में छुपकर, सीता रोती आज
दशरथ के अयोध्या की कितनी दयनीय स्थिति
चिंतन की शैय्या पर लेटकर जन मानस सोचता
युग स्थितियों से प्रेरित होकर, जाति – वर्ण
रूढियों, आचारों के छिन्न करने नव चेतना से
मंडित होकर नई आत्मा वाला मनुज, एक दिन
सूरज बनकर , घाटी के क्षितिज पर उदय होगा
तब नव दूर्बा के हरे प्ररोहों से , घाटी फिर से
होगी मनोहर ,सूरज फिर फैलायेगा उज्ज्वल प्रकाश
सौरभ सुगंध भरी होगी चिनाब , झेलम जल
ज्योत्सना होगी शीतल , फिर से लौटकर
आयेगा प्रेम , दया, सहृदयता , शील , क्षमा
और तप , संयम , सहिष्णुता , रजत - स्वर्ण
में अंकित अप्सरा सी घाटी लगेगी फिर से सुंदर