आधुनिकता के दौर में

पूरा कुनबा दुखी है पर शIरीरिक विकलांग नहीं

नही रोटी के टुकड़े के लिये

कचरा छानते हुए इंसान की तरह

ना ही निर्धन होने का दुख है

सक्षम शरीर से सम्पन्न विकास की रीढ है

देश के प्रति त्याग ,परिवार पालने की उर्जा है

दायित्व निभाने का भरपूर जज्बात है। आधुनिकता के दौर में दुख भोग रहा है..........

दुख गरीबी पराधीनता नही

उसका दुख वैसा ही है प्यारे

जैसा कोख में मारी गयी कन्या

ब्याह की बलिबेदी पर सती दुल्हन

बलात्कार की षिकार कोई बहन

दुखी है क्योंकि

विशमाद की दुत्कार पा रहा है । आधुनिकता के दौर में दुख भोग रहा है..........

उसका दुख दैहिक दैविक और भौतिक नही है

उसका दुख तो सारे दुखों से उपर है

आदमी होकर भी अछूत है

तरक्की के रास्ते-बनते बनते बिगड़ जाते है

विज्ञान के युग में छुआछूत का षिकार है

आधुनिक समाज में वनवास भोग रहा है

सक्षम होकर अक्षम हो गया है । आधुनिकता के दौर में दुख भोग रहा है..........

काश जातिवाद का कलंक भारत के माथे से मिट जाता

वंचित मानव,बूढे समाज के साथ समानता का भाव पाता

कबूल हो जाती भोर की दुआ हो जाती जीवन की साध पूरी

चिड़ियाओं कलरव की तरह भोर का सुख मिल जाता

यही तो है उसका लूटा हुआ सुख

जिसकी चाह में वह आधुनिकता के दौर में दुख भोग रहा है..........

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