चल रहे थे जब हम अनजान राहों पर

चल रहे थे जब हम अनजान राहों पर,

मिला था हमे कोई उन्ही राहों पर

भटक रहे थे जब हम उन राहों पर

मिला था वोह तभी हमे उन राहों पर

खुश हुए थे हम बहुत यु उसे मिलकर ,

वोह राहे भी अपनी सी लगने लगी थी तब

कोई था ऐसा जिसकी बातो में हम खो जाते थे

डूब जाते थे हम उनकी बातो में कुछ उस तरह

कोई था जो न जाने क्यों इतना अपना सा लगता था ,

कोई था जो बहुत प्यारा लगता था

कोई है जिसे हम आज भी याद करते है

पर वो कोई ना जाने अब कहाँ है

पता नहीं कहा खो सा गया उन अनजान राहो पर

ना जाने वोह अब कैसा होगा

फिर दुबारा क्यों ये रIहे अनजान -सी लगने लगी

चल रहे थे हम अनजान राहो पर

ज्योति चौहान

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