अनकहे गीत बड़े प्यारे हैं

जो न छंद बद्ध हुए

बिल्कुल कुंआरे हैं

तिरते अभी नभ में

गीत बड़े प्यारे हैं !

जो न अभी हुए मुखर

अर्थ क्या धारे हैं

ले चलें जाने किधर

पार सिंधु उतारे हैं !

पानियों में संवरते

पी रहे गंध माटी

जी रहे ताप सहते

मौन रूप धारे हैं !

गीत गाँव की व्यथा के

भूली सी इक कथा के

गूंजते से, गुनगुनाते

अंतर संवारे हैं !

गीत जो हृदय छू लें

पल में उर पीर कहें

ले चलें अपने परों

उस लोक से पुकारें हैं !

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