जब भी तुम याद आती हो आँखों से सागर छलका जाती हो !!
दिनेश गुप्ता [ दिन ]

उम्र के हर पड़ाव मे, जीवन के हर बदलाव मे
रात मे कभी दिन मे, धुप मे कभी छाँव मे
ज़स्बातों के दबाव मे, भावनाओं के बहाव मे
ज़ख्मों पर मरहमों मे, महरमों पर फिर घाव मे
जब भी तुम याद आती हो, आँखों से नींदे चुरा जाती हो
बरसते हुए सावन मे, ठहरे हुए बादल मे
भीड़ मे तन्हाई मे, ख़ामोशी मे हलचल मे
खिलती हुयी कलियों मे, महकते हुए गुलशन मे
आज मे कल मे , गुजरने वाले हर पल मे
जब भी तुम याद आती हो, आँखों से सागर छलका जाती हो
महफिलों मे विरानो मे, अपनो मे बेगानो मे
हकीकतो मे खवाबों मे, सपनो मे अरमानो मे
रुस्वाइयों मे तन्हाइयों मे, अपमानो मे सम्मानों मे
मंदिरों मे मदिरालयो मे, मयखानों मे पैमानों मे
जब भी तुम याद आती हो, हाथों से जाम झलका जाती हो
दिन के उजालो मे रात के अंधेरो मे, सपनो मे खवाबों मे
किस्सों मे कहानियों मे, अखबारों मे किताबों मे
ऊँचाइयों मे गहराइयो मे, सवालों मे ज़वाबो मे
जब भी तुम याद आती हो , धडकनों से सांसे चुरा जाती हो !!

दिनेश गुप्ता [ दिन ]

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