अक्सर यह सवाल इन वर्षों में
हर बार अलग-अलग मित्रों ने
जो किसी भी स्तर की कविता लिखने
लगे हैं कई वर्षों से प्रतिभा दिखाने
या कुछेक शौक़ नया-नया अजमाने में
पशोपेश में दोहराते मेरे सामने
ललित, फ़लाँ व्यक्ति ने सम्पर्क साधा
कहा आपको मिलनी चाहिये पूर्ण मर्यादा
हम नए रचनाकारों की रचनायें
प्रकाशित कर रहे हैं, और इसे आजमायें
आपकी भी शामिल करेंगे पाँच रचनाएँ
तीन हज़ार की योगदान-राशी केबल
छप जायेगी किताब और नाम का लेबल
पुस्तक की दस कॉपियाँ भी दी जायेगी
आपका नाम और कविताएँ किताब में आयेगी
नाम छपा देखने की इच्छा भारी
पर “तीन हज़ार" पैदा करता मुश्किल सारी
लगने लगता है,रुपए दें या ना दें?
किताब छपे भी या ना छपे >
कॉपियाँ मिलें या ना मिले ?
संक्षेप में बताऊँ जो जवाब
स्वप्न में भी पैसे देने का न देखें ख्वाब…
बिना पैसे लिए यदि छापे रचनायें
और पुस्तक की कुछ प्रतियाँ स्वेंछायें
अगर मिले तो, फिर मन माने तब छपवायें
लेकिन पैसे देकर दस अन्य के साथ
शामिल होने के विषय में महत्तवपूर्ण बात
कवर पेज पर तथाकथित “संपादक” का नाम
बड़े-बड़े अक्षरों में दिया जाता है अंजाम
कवर पर कहीं नहीं लिखा होता यह पैगाम
मुख़्तलिफ़ कवियों की रचना-संग्रह का काम
10-20 रचनाकारों को शामिल कर
सबसे कई-कई हज़ार रुपए लेकर
उन्हें प्रकाश में लाने का प्रलोभन देकर
मुर्ख बनाया जाता इस प्रकार
अर्थशास्त्र से उदाहरण देकर समझाये
मान लीजिए कि दश कवियों का मनोनयन
आठ-आठ कविताओं का संकलन
पुस्तक में कुल करीब सो पन्नें का आकलन
हर कवि का तीन-तीन हज़ार अनुदान
पैसा इकठ्ठा हुआ तीस हज़ार के समान
अगर बीस-बीस प्रतियाँ दी गईं मुफ्त
दो-सौ प्रतियों में ही हो गया काम चुस्त
इसमें पचास प्रतियाँ और जोड़ लीजिए
अधिक से अधिक ढाई-सौ प्रतियाँ किजीये
ढ़ाई-सौ प्रतियाँ छापने में कितने रुपयें दरकार
अधिक से अधिक खर्च होंगे दस हज़ार
बाकि के बंचे बीस हज़ार का क्या होगा
ये तो “संपादक” जी ही शायद ? भोगेगा
“संपादक” जी को पैसे मिल गया
पुस्तक के कवर पर नाम आ गया
“संपादक” होने का गौरव मिल गया
मुफ़्त में पुस्तक की प्रतियाँ मिल गई…
बिना कुछ लिखे अपने नाम से किताब छप गई…
कवि को क्या मिला?…
अपना छपा हुवा नाम
जिसका सिर्फ तीन हजार लगा दाम
ऐसी पुस्तकों की गुणवत्ता का क्या कहना
फिर भी लोंगों को मुश्किल है समझाना
कियों की हर कोई चाहे अपना नाम छपाना
:-सजन कुमार मुरारका