आरक्षण की बेदी पर

आरक्षण के मुद्दे पर
यों तो सब दल साथ खड़े हैं।
इतनी छीना झपटी देखकर हम तो शर्मसार खड़े हैं।
संसद तो बन गया अखाड़ा
कुश्ती देखो, देखो दंगल
सारे पहलवान खड़े हैं।
आरक्षण के मुद्दे का अब कोई आधर नहीं है
इसके चलते जिनके पूर्वज ऊंची कुर्सी पा चुके हैं
उन्हीं के वंशज बार-बार आरक्षण क्यों पा रहे हैं।
देखो, वह रिक्शेवाला
हिंदू है या मुसलमान
दलित है या सवर्ण
खून पसीना बहाकर
अपनी रोटी कमा रहा है
उसके बेटे को तो हम,
डाॅक्टर नहीं बना रहे हैं
देखो वह पंडित बेचारा
धोती कुर्ता दक्षिणा लेकर
अपना परिवार पाल रहा है
दलित नहीं है इसलिये
उसका बेटा इंजीनियर
नहीं बना रहे हैं।
आरक्षण की बेदी पर कितनी आशायें मलीन हुई है
कितने होनहार बच्चों की उम्मीदें शहीद हुई हैं
ये जो हमारे नेता हैं वो
जात-पांत मं बांट-बांटकर वोटों का गणित लगा रहे
इसलिये सारे दल इस मुद्दे परसाथ हुए हैं
स्वतंत्राता के सत्तरवें दशक में
जाति आधरित आरक्षण का
अब कोई औचित्य नहीं है।
फिर भी साल दर साल हम
आरक्षण का प्रतिशत बढ़ा रहे हैं।

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