आवाज़ मेरी में बात नहीं, जो सुनी थी कभी ख्वाबों में I
ना रस ही रहा, ना रास रहा, देखा था खूब जवाबों में II
नीर, धरा को बना रसायन, इंसान उगाता फसल घनी,
कोई जहर बेच, कोई रोज फसल, पानी है बेच ये बने धनी,
तनी है भोहें हर इंसां की, मौत लिए आबादों में I
आवाज़ मेरी में बात नहीं……………………..II
जहर घोल साँसों में अब, प्रतिमान उन्नति बढ़ता है,
क्षत विक्षत कर अंग मानव के, गिर नैतिक अब चढ़ता है,
मढ़ता है सर दोष ये दूजे, जब विफल हुआ सैलाबों में I
आवाज़ मेरी में बात नहीं……………………..II
दौड़े कदम भोजन करता, कारण भौतिकता नाच रहा,
मष्तिक है कहीं, है मांस कहीं, जीवन को समझ अब सांच रहा,
आंच रहा खुद को अनजाने, डूब स्वपन श्वाबों में I
आवाज़ मेरी में बात नहीं……………………..II
तन भी चोर है मन भी चोर, ऐय्याशी ऐश बनी परिभाषा,
गड़ा गर्त में गहरा है, आकाश की करता अभिलाषा,
झूठी आशा में बैठा है, दास है आज शराबों में I
आवाज़ मेरी में बात नहीं……………………..II
प्यार का पंछी पंगु है, घृणा में ढूंढे प्यार यहाँ,
ढहने मानवता आज खड़ी, रुकने को है अब सार कहाँ,
यार जहाँ मेरा ‘मनु’ है बैठा, उसे ढूँढू ढका लाबादों में I
आवाज़ मेरी में बात नहीं……………………..II