बच के चलना बहन-भाई

जरा बच के चलना बहन-भाई

राजनीति के चक्रव्यूह को

आमआदमी का विकास

देश की तरक्की ना भायी ।

बंट गया देश

चढा था सिर स्वहित अहंकारी स्वमान

सत्ता की आतुरता संघर्ष की घबराहट

हाय रे नियति

तान लिया छाती पाकिस्तान ।

यही नही थमीं करतूते

चीन के हाथों तिब्बत खोया

भरूपर घड़ियाली आंसू रोया

सत्ता के जुये में ऐसा उलझा कश्मीर

हर हिन्दुस्तानी के माथे चढ गया

अलगाववाद और आतंकवाद का पीर

बचा है बस तो अपने पास एकै हथियार ।

मतदान का अधिकार

रहे चैकन्ना और होषियार

मेरी सुन लो दुहाई

स्वार्थ सत्ता की आतुरता को भापो

अपने अधिकार को देशहित में नापो

चूक गयी फिर दोहरायी

लोकतन्त्र पर लूटतन्त सवार हो जायी

अबके बरस सम्भल के चलना बहन-भाई.......

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