वीराने वन में, जलधार बन बहो
सोंधे सावन में, फुहार बन बहो !
उन्मुक्त पवन सँग, पत्तों से तुम तिरो
अनंत गगन में, विहंग से फिरो
विभक्त जगत में, सम्पूर्ण हो रहो
बहो, बस बहो !
बांधे न कोई तीर, ऐसी नाव तुम बहो
रोके न कोई राह, बने फकीर तुम बहो !
सिमटो न किसी तौर, निस्सीम हो रहो
रीते अधर में मुक्त, बस शून्य ही कहो
अनंत की हो चाह, अमरत्व ही गहो
बहो, बस बहो !