जो कल तक थी पेड़ के ऊपर
अब खम्भे पर रहती है।
मानव ने छीना उसका बैठना
चह-चहाकर कहती है।
बनाऊँ कहां घोसला अपना
अण्डे दे बच्चे कहां पालूँ।
खेलेंगे कहाँ ये बड़े होकर
सेेचती प्रतिपल ही रहती है।..........
मानव हुआ स्वार्थी इतना
पेड़-पौधे सब नष्ट किये।
आश्रय छीना पशु-पक्षियोंका
अनगिनत उनको कष्ट दिये।
कल तक जिसका था कलरव
अब चहचहाहट दिखती है।
दुःख से कराहने को कूकना
आज की पीढ़ी कहती है।.......
भले ही छीनते आँगन में बैठना
और चहचहाकर लोरी कहना।
पर पेड़ न उससे छीनते
और न ही घोसलों में रहना।
यही चिड़ियारानी कहती है
खम्भे पर जब से रहती है।
जो कल तक थी पेड़ के ऊपर
अब खम्भे पर रहती है।।