कुछ धमाके होते हैं और
उन धमाकों के साथ
कुछ जिंदगियां तमाम….
उन धमाकों में है सन्देश
किसी तरह की कायरता का
एक अमानुषिक बर्बरता का
जिसे धमाके करने वाले
कहते हैं अपनी ताकत
जिससे करते हैं वो
सत्ता के खिलाफ जंग
जिसे कहते हैं वो
कि यह ज़ुल्म के खिलाफ
जो भी हो मगर उनकी इस
ताकत या कायरता का शिकार
बनते हैं कुछ मासूम लोग
बच्चे-बूढ़े और स्त्रियाँ भी
जहां होते हैं धमाके
वहां बिखर जाता है खून
बिछ जाती हैं लाशें और
तड़पते हैं जीवित शरीर
जिसे देखकर हो जाता है
हर कोई कातर-निर्विकल्प
शून्य और संज्ञा रहित…..
और मर्मान्तक तक कहीं
अतल गहरे में रोते हैं हम….
जिसे कहते हैं हम मानवता
हम सब किसी ना किसी
कोख से जन्म लेते हैं…..
क्या धमाके करने वाले
किसी भी कोख से जन्म नहीं लेते !!??