मेरे दिल की तरह मासूम हो तुम– राजेश कुमार गर्ग


मेरे दिल की तरह मासूम हो तुम, तुम मेरी तरह शर्माती हो |
परी हो या कोई अप्सरा, जो मेरे सपनो मे आती हो |
भोली सी कोई सूरत हो, जैसे देवी की मूरत हो |
चाहा हैं तुझे चाहत से बढ़कर, मेरे दिल की बनी ज़रूरत हो |
मेरा हाथ पे लिखी, तक़दीर हो तुम |
मेरे दिल पे बनी, तस्वीर हो तुम |
अब तक जिसको महसूस किया |
Is दिल ranje की हीर हो तुम |
किस कवि की कविता या शायर की ग़ज़ल हो तुम |
गुलाब की खुशबू या zeel का कमल हो तुम |
मेरे दिल होती कोई halchal हो तुम |
मेरे सपनों की मुमताज़ या ताजमहल हो तुम |
नदी की धारा या सागर की लहर हो तुम |
ड़लती हुई सांझ या निकलती सहर हो तुम |
थोड़ी सी शरारती, थोड़ी सी शैतान हो तुम |
मेरे बेताब दिल के लीये , भगवान हो तुम |
मेरे दिल ने किया बो ईरादा हैं तू |
मैने खुद से किया बो वादा हैं तू |
muze नही किसी से गिला या sikva |
मेरे दिल की तरह सीधा सादा हैं तू |
मेरे दिल की तरह मासूम हो तुम, दुल्हन की तरह शर्माती हो |
धड़कने rook जाती दिल की, जब सामने तुम आती हो

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