प्रेम-प्यार,आदर-भाव बना रहे परस्पर
सीखें हम श्रद्धा-भक्ति, चले क्षमा की मूर्ति
व्रतवीर, ईशा, बुद्ध और राम के राह पर
बढे सिद्धि, समृद्धि देश की, हो नाम समाज का
हम रहें मिलकर आपस में, बनकर एक दूजे का
इसलिए मनुज- गुण, कर्म-धर्म, सस्कार को अपनाया
सोचा, पाकर परम्परा का पर्व, हम सहज अपने जर्जर
जीर्ण-संकीर्ण विचारों से, हो सकते हैं मुक्त
हमारा कर्म विचार,विधर्मियों का करते रहे प्रतिकार
हिन्दुओं ने शुरू किया, दीपावली का सुंदर त्यौहार
बुराई पर अच्छाई की जीत, शत स्वरों में सच प्रज्वलित
अंधकार की गुहा दिशाओं में, हँसती ज्योति विस्तृत
पाते हम स दबुद्धि, तेज , सत्कर्मों से नित
मिटाकर जाति-पाति, वर्ण -भेद हम मनाते दीवाली
फूलझड़ियाँ- पटाखे फोड़कर करते हम खुशियाँ जाहिर
मिलते एक दूजे के गले, बाँटते लावा और मिठाई
खाते हम कसम ,निर्वाह करेंगे मनुष्यता का धर्म
भावुक मन का विषय विषाद भुलाकर, एक रहेंगे हम
जिसके विश्व में गुंजता रहे, राम -कृष्ण का जयनाद
जिसे सुनकर विधर्मी भी बैठ जाये उठकर जाग
हमारे साथ मिलकर मनाये दीपावली का त्यौहार
कुसुम -कानन, अंचल में बहता रहे मंद - मंद
मानवता का शीतल सुगंधित सौरभ बयार साकार