कहीं दूधवालों के नखरे बहुत हैं कभी हैं हसाते कभी हैं रूलाते।
कभी दूध खुद ही यहॉ ला के रखते, कभी अपने घर पर हैं हमको बुलाते।
अभी तक तो हमने धवल रंग में ही, सदा दूध पीया सदा दूध पाया।
जलाकर कड़ाहों में बीबी के संग में, कई बार हमने है खोया बनाया।
न जाने है क्या दूध में आज भगवन, कि अब थक गया हूॅ जलाते जलाते।।1।।
मेहमान घर पर दिखाई दिये तो, इस दिन वे निश्चित बहाना बनाते।
समय जब यहाॅ चाय की बीत जाये, स्वयं दूध देरी से अपने वे लाते।
कहते हैं हॅस, भैंस अब दूध दी है, उसे थक गयी मैं मनाते मनाते।।2।।
पहले तो प्रिय दूध की ज्यादती में, मिलाते थे थोड़ा सा कुछ कम ही पानी।
मगर आज कल तो हुआ दूध दुर्लभ, गिराते हैं उसमें वे बाल्टी से पानी।
जिन्हें यमपुरी का टिकट मिल गया है, वे भी बेचारे हैं पानी मिलाते।।3।।
जितना था सम्भव मिलाया था हमने, मगर मेरी मम्मी गोशाले से आयी।
वर्षा का जल था टपकता जो छत से, उसी जल को मम्मी भी फिर से मिलायी।
हमको सदा डॅाट पड़ती ही रहती, मगर मम्मी पापा हैं अच्छा मिलाते।।4।।
गरम करते करते बिताते हैं घण्टो, मगर न दिखाई दे थोड़ा सा छाली।
लीटर से बस नापकर दूध को ही, बताती थी मुझको मेरे घर की वाली।
यहॉ नित्य कम दूध आता है साजन, मैं थक गयी हूॅ बताते बताते।।5।।
अगर आपके घर भी हो गाय भैंसें, तो अपने भी सुनलो औ सबको सुनाना।
भले भूख से मरना भी पड़ गया तो, वह भी है अच्छा न पानी मिलाना।
यमराज के दूत पीटेगें तुझको, औ जनता थकेगी चिढ़ाते चिढ़ाते।।6।।