न जाने कौन-२ से रंग, दिखाते ये लोग–बिजेंद्र एस. ‘मनु’


न जाने कौन-२ से रंग, दिखाते ये लोग,
पर मेरे हर रंग को, क्यों चिढाते ये लोग,
कैसे सहे दो दिलों का मिलन, प्यार के ये बैरी,
जबकि बैठे दो परिंदों को, उड़ाते ये लोग,
हमारा हर रंग बेरंग है, बदरंगों की नजारों में,
नाच है इनका मुजरा भी, जब खुद को नचाते ये लोग,
काली करतूत को छिपाने की कला, इन्हें आती है,
हमारी कला को करतूत, बताते ये लोग,
मंदिरों में भीड़ है, पूजा इनका धर्म,
गरीब और माँ-बाप को, सताते ये लोग,
पास इनके पाई नहीं, गरीब भी रोटी खा पाए,
मदिरा और मॉस पर, लुटाते ये लोग,
खूब जगह है बंगलों में, दूसरी बीवी बच्चों की,
माँ- बाप को घर से, है भगाते ये लोग,
‘मनु’ तो मस्त होता, अपनों के संग,
अगर बार-२ नीचा, ना दिखाते ये लोग,

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