दुर्मिल सवैया

(कोलकाता का रिक्शावाला)

“नित पांवन दौड़ लगावति है”

//कृश कंचन देह सुदेह यहाँ
धरणी भर भार उठावति है,

निज हाथन में
हथवाहन लै नित पांवन दौड़ लगावति है,

तन पे बनियान हो स्वेद सनी तब वायु प्रवाह जुड़ावति है,

बरखा गरमी सरदी सहिकै निज कर्म सुकर्म निभावति है.

“इस नेह से पावन दीप जले”

नित पावन कर्म
सुकर्म करे श्रम मूल्य सही फिर भी न मिले,

नहिं भाग्य में है सम्मान लिखा अपमान इसे कबहूँ न मिले,

पथ कंटक दूर करें इसके निज नेह सनेह के फूल खिले,

यह कालजयी श्रम साधक है इस नेह से पावन दीप जले. //

“धरणीधर हर्ष जतावति हैं”

भरि अंग विहंग अनंग
सखा रघुवीर सुधीर सुहावति हैं,

निज अंतर से नयना बरसैं सुगरीव के भाग जगावति हैं,

लखि नेह छटा अभिराम यहाँ धरणीधर हर्ष जतावति हैं,

संग अंगद मीत सुमीत सभी हनुमान व नील जुड़ावति हैं |

“मन चंद्र चकोर बना
अब तो”

सखि रंग उमंग तरंग
यहाँ मदमाय रहा मुखड़ा अब तो |

हँसि संग विहंग अनंग बने रति भाव
यहाँ बिखरा अब तो |

अधराधर पे दुति दामिनि ज्यों भरमाय रहा जियरा अब तो |

रंग खेलत मोहत चारि सखी मन चंद्र चकोर बना अब तो |

"उमड़े
हिय में अनुराग जना ”

बनि शीश का ताज सदा
चमकै अरु श्वेत छटा हरषाय मना |

जिमि अंतर वास करे मुमताज नदी यमुना पहिं तीर बना |

यह प्रेम प्रतीक है ताज यहाँ इतिहास में जो सरताज बना |

अब नैन सुनैन इहै लखिके उमड़े हिय में अनुराग जना |

“छल-छंद प्रतीक था शाहजहाँ ”

मन नेह सुगेह है ताज
यहाँ मुमताज मुरीद था शाहजहाँ |

नदिया यमुना पहिं तीर धरा धरि धीर लखै बहु भाँति जहाँ |

बलि हूनरमंद अतीत के
हाथ की भेंट चढ़ावत शाहजहाँ |

यदि प्रेम प्रतीक है ताज यही छल-छंद
प्रतीक था शाहजहाँ |

“मन अंबर नील उड़ान
भरै”

रचि रंगिनि देह
सुदेह सबै रंग देखि छटा अभिराम सुहावै |

सखि सोहत मोहत लाल हमैं जेंहि लाल विलोकि हियै मन भावै |

हिंय प्रीति ते पीत प्रतीति करै हुरियारेन को हरि मा हरषावै |

मन अंबर नील उड़ान भरै इठलाइ रंगै अरु नेह लगावै |

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