वह लड़की
धुन्दले,
प्रकाशबेदा
अब्द की मानिंद
नंगी
शाइस्ता
कभी कुछ नहीं छिपती ।
वस्फ़-ए-आसमा की परी
अपनी ज़मीनी जड़ों को खूब पहचानती थी
वह लड़की ।
वह
कोरे कागज़ की मानिंद थी
जिसपर,
अच्छी
या फिर बुरी इबारतें
लिखी जा सकती हो
अबतक
फहमरहित थी
अस्तमित
सीने में दफ़न
सुबहान मुहब्बत से
चल पड़ी एक रोज़
वर्त्म-ए-मुहब्बत पे
वह लड़की ।
उसने खोज लिया
अतूथ शख्सियत को
हिरकने लगी
उसकी बेजोड़ बाजुओं में
चुन्धियाने लगी अहर्निश
हिर्स-ए-मुहब्बत में
वह लड़की ।
उसकी
खूबसूरत मुसव्विर आँखें
उकेर लिया करती थी
उसी
प्यारी शख्सियत के अक्स
अपने
अबास की दरों दीवारों पर
किसी
बेशकीमती प्रोजेक्टर की मानिंद ।
वह लड़की
बेइल्म ही रही
अभी भी
इल्लत-ए-इश्क से
इस मर्तबा ।
उस लड़की की
बेउज्र
सरगर्म मुहब्बत
घसीट ले गई उसको
किसी ब्लेक होल की मानिंद
हवास की रौशनी से
बहुत परे
बदहवासी के अंधेरों में ।
उज्र्गी की सताई
बर्दाश्त नहीं कर पाई
सीने में उबलती अतीव खलिश,
मुहब्बत का अंत
बनकर रह गई महज़
अफसाना-ए-अजस मुहब्बत
मुहब्बत का उम्दा सबक
वह लड़की !
Poem Composed by Baljeet Singh