घनाक्षरी

“छेड़ लें मृदंग
ज्यों ”

मोर-मीत मस्त-मस्त, झूम-झूम नाच-नाच,

आ गई जो
बीच धार, प्रेम की उमंग
ज्यों.

बार-बार
देख धार, कांप-कांप कर
धरे,

प्रेम में
पगे हैं साज, छेड़ लें मृदंग
ज्यों.

चूनरी को
ओढ़-ओढ़, लाज अंग
ढांप-ढांप,

गंग तीरे
छेड़ें राग, रूपसी-अनंग
ज्यों.

देख
मृग-मरीचिका, पुकारतीं इन्हें
वहाँ.

साजना का
साथ आज, भंग की तरंग
ज्यों..

“हरि को पुकारे है”

कर शीश माथे पर, भाव नृत्य मुद्रा अब,

प्रेम रस बरसत, शिष्या गुरु द्वारे है,

अभिनीत भाव भाव, भारत का रंगमंच,

अभिराम गुण राशि, जतन संवारे है,

गुरु नेह भाव लखि, चेरी भइ अभिभूत,

अंजुरी को बाँधि के, आँचल पसारे है,

मनोहारी मातृ भाव, संगति का है प्रभाव,

मन मानो हरि हरि, हरि को पुकारे है|

“पी से मिलाइ दे”

गंगा के किनारे एक, जोगिनि पुकारे अब,

मातु वंदनीया मोहै, तर्पण कराइ दे,

मैया के दुलारे हम, तेरे ही सहारे अब,

जगमग जल धारा, रस बरसाइ दे,

छवि मन में संवारे, मेरे नैना कजरारे,

निज जीवन जल से, सपन सजाइ दे,

पिया पिया है पुकारे, दिल आया तेरे द्वारे,

गंगा मैया मेरे मन, को पी से मिलाइ दे.

“भारती का प्यार ये”

हरषाती सरसाती मंद मंद मुसकाती

फाग में उमंग बन शीतल बयार ये |

इठलाती बल खाती अंग अंग लग जाती

प्रीति नेह संग बँधी मधुर बहार ये |

नैनन से कजरारी अंग मारे पिचकारी

मन को भिगोने वाली
रस की फुहार ये |

भाव भरे सुविचारी मन भावैं सब चारी

मातु पितु की दुलारी
भारती का प्यार ये |

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