सुधियों में आता घर अपना
रोजी रोटी की तलाश ने
दर-दरवाजा नेह तुडाया
घिसे -पिटे जूतों के तल्ले
छत-छप्पर तब मिल पाया
उचट उचट जब जाए जब निदिया
आंखों में तिरता घर अपना
साँझ ढले पहुँचूँ जब कुटिया
गैया- बछरा नजर न आते
स्वागत करने की आतुरता
रँभा- रँभाकर सर न हिलाते
चारा -सानी -सार सिसकते
दिनरात सिसकता घर अपना
घर आँगन खलिहान खेत में
दिन दिनभर बापू का खपना
चौका -चुल्हा घर आँगन में
चुपके चुपके माँ का गलना
घोर अँधेरा डगर न सूझे
बन दीपक जलता घर अपना
[भोपाल:२८.०७ ०८]