हम जब भी घर से निकले है , हर मोड़ पर टकराए है

हम जब भी घर से निकले है , हर मोड़ पर टकराए है
रौशनी की किरण दूर तलक नहीं दिखती , घने घनघोर अँधेरे छाए है
अपने अक्स से कैसा पिछा छुडाए , हर तरफ तेरी यादो के साये है
वक्त के साथ ये मौसम नहीं बदले , चारो तरफ सन्नाटे छाए है
हकीकत ये नहीं है हमने कोशिस नहीं की दिल के ज़ख्मो को भरने की
जब भी घर से निकले है कुरेद कर लौट आये है
जब भी घर से निकले है कुरेद कर लौट आये है
लगता है जैसे कई ज़न्मो से चोट खाए है
लगता है जैसे कई ज़न्मो से चोट खाए है

कुछ पाने की चाहत में इतना आगे निकल आये की लौटने की गुंजाईश नहीं रही
दिल के अरमा सारे इश्क की आंधी में बह गए, कोई ख्वाइश नहीं रही
हकीकत ये नहीं है की हमने गिरकर उठने की कोशिस नहीं की कभी
जब भी संभलना चाहा है , हर बार लडखडाये है ,
जब भी संभलना चाहा है , हर बार लडखडाये है

हकीकत ये नहीं है की हमने मंजिलो को पाने की कोशिस नहीं की कभी
जब भी रास्ते बदलें है हमने , लौटना भूल आए है
हम जब भी घर से निकले है , हर मोड़ पर टकराए है
लगता है जैसे कई ज़न्मो से चोट खाए है
लगता है जैसे कई ज़न्मो से चोट खाए है

HTML Comment Box is loading comments...
 

Free Web Hosting