गहरी निद्रा में सोये हम
तब भी भीतर जागे है वह,
बड़े धैर्य से करे प्रतीक्षा
हर सुख-दुःख का साथी है वह !
अंतिम स्वप्न वही भेजता
नींद टूटती कुछ जग जाते,
पर कैसे नादान बने हम
करवट बदल-बदल सो जाते !
जाने कब से आस लगाये
कोई हमसा भीतर रहता,
एक अनोखे लोक का वासी
हँस कर हर नादानी सहता !
नहीं एक बंटे टुकड़ों में
मन में द्वंद्व सदा रहता है,
बोलो किससे बात करूं मैं
भीतर से कोई कहता है !
एक बनो और घर आ जाओ
स्वप्न लोक से बाहर आओ,
तुम ही तो मिल सकते मुझसे
अपने इस हक को तुम पाओ !