हूस्टन टेक्सस राज्य का सबसे बड़ा शहर है. अमेरिका के सबसे बड़े शहरों
में न्यू योर्क, शिकागो, लोस अन्जेलेस के बाद हूस्टन का नाम लिया जाता है.
सन २०१० की जन गणना के अनुसार जन संख्या के मान से हूस्टन छठे स्थान पर आता
है. यहाँ स्पष्ट करना उचित है की अमेरिका के मूल निवासी इंडियन कहलाते हैं.
अतः उन्हें इंडियन अमेरिकेन और एशिया महाद्वीप के प्रवासियों को एशियन
अमेरिकेन कहा जाता है. कुल हूस्टन की जन संख्या ५९४६८०० (उन्सठ लाख छयालिस
हज़ार आठ सो) में अमेरिकेन इंडियन और एशियन अमेरिकेन क्रमशः ९१६३७ और ३८९००७
है. और एशियन अमेरिकेन की जन संख्या बारह शहरों में विशेष उल्लेखनीय है. और
टेक्सस में उनकी जन संख्या २४५९८१ है. संपूर्ण अमेरिकेन की जन संख्या मैं
केवल भारतियों की जन संख्या २८४३३९१ है. अर्थात .९०% है. हूस्टन में भारतीय
अमेरिकेन इंग्लिश, हिंदी, मलयालम, गुजराती आदि भाषाएँ बोलते हैं.
हमें हूस्टन के केटी शेत्र में प्रवास का अवसर मिला. जिस शेत्र को अनेक
कारनों से महत्वपूर्ण माना जाता है. यथा गुणात्मक शिक्षा उच्च रहन सहन ,
खेल कूद की विशेष सुविधाएँ, स्वस्थ सेवाओं की गुणवत्ता, धार्मिक संस्थाओं
की बहोलाता आदि. हमें वहां अपनी बेटी जिज्ञासा आनंद के निवास पर लगभग डेढ़
माह अगस्त ५ से सितम्बर २४ तक का प्रवास का अवसर मिला. इस बीच भारतीय
प्रवासियों से इतना सम्मान और आत्मीयता का वतावरण मिला की हमें भारत या
भोपाल से दूर रहने का अभाव खटका ही नहीं. और सुखद संतोष हुआ. जिसका अंत में
दोहों में विस्तृत वर्णन किया गया है.
जैसे ही हम लोगों की हवाई यात्रा की थकान दूर हुई, की हम लोग दुसरे दिन ७
अगस्त को उस ओर चल पड़े जहाँ विएतनामी बुध्धिस्ठ सेण्टर और अष्टलक्ष्मी
मंदिर, स्वामीनारायण मठ के अनुयायियों का विशेष पूजा स्थल है. यहाँ अनेक
भारतीय दर्शनार्थ आये थे. उनसे मिलकर लगा की भारत में ही हैं. साथ ही अपने
वंशज महात्मा बुद्ध के दर्शन कर अति कृतार्थ हुआ. उसके आसपास मंदिर,
गुरुद्वारा मस्जिद आदि भी स्थित है.
अभी उक्त मंदिरों और देश वासियों से मिलने का सुख ताजा ही था, कि भूतपूर्व ग्रेअटर कैलाश देल्ली निवासी श्री चोप्राजी के यहाँ हम लोगों को जाने का सुखद संदेसा आया. हम सब लोगों के पहोंचने पर हम सबको भव्य स्वागत और स्वादिष्ट जलपान ने सराबोर कर दिया. वे भारत के उच्चायुक्त के साथ सेवारत रहने के बाद सेवा निवृत हो पहले न्यू योर्क फिर वहां से हूस्टन आ बसे. उनके दो बेटे एक बेटी अब वहीँ सेवारत हैं. पर उन्हें अब अकेलापन अपने घर देश भाई बंधुओं की यादों में धकेलता है. परन्तु बच्चे सब यहाँ है, सारा जीवन यहाँ बीता इसलिए यहाँ खुश भी हैं और दुःख में भी डूबे रहते हैं. पर गुनगुनाते हैं. मधुमय प्यारा, देश हमारा..
अभी हम लोग हूस्टन के म्यूजियम डिस्ट्रिक्ट में स्थित म्यूजियम ऑफ़ फैन आर्ट्स, होलोकाउस्त म्यूजियम, म्यूजियम ऑफ़ हेअलथ, चिल्ड्रेनस म्यूजियम और म्यूजियम ऑफ़ नेचरल साइंस आदि दर्शाने स्थानों में घूमने और दर्शन का सुख लूट रहे थे. जिन्हें श्रम द्वारा हूस्टन को महान अवः अमर बनाने का सन्देश हमें विमोहित कर रहा था. इसी बीच एक के बाद एक भारतीय परिवारों के स्नेहिल आमंत्रण आये.
सबसे पहले हम लोग श्रीमती राखी और श्री नवनीत माथुर के घर गए. पूरे परिवार पति पत्नी और बेटे ने स्नेहाभिवादन के साथ साथ चरण स्पर्श किये. हम लोगों ने आपस में बातचीत और परिवारों आदि की जानकरी ली. श्रीमती राखी ने रीजनल कालिज, श्यामला हिल्स, भोपाल से बी.एड किया तथा वहां इंजीनियर्रिंग कॉलेज में नौकरी भी की, उनके ताऊ का परिवार हर्षवर्धन नगर में रह रहा है. हम लोगों ने लगभग चार घंटे उनके साथ बिताये. भारतीय खान पान व्यव्हार से लगा कि हम लोग अपने घर भोपाल में ही हैं. उसके बाद श्री सुहास श्रीमती स्मिता, श्री मोहित, श्रीमती श्वेता सिंह, श्री विवेक, श्रीमती सोनिया अवं डॉक्टर रणदीप सुनेजा अवं श्रीमती सीमा के परिवार में उनके आमंत्रण पर उनसे मिलने, बात चीत करने, खानाखाने का सुख मिला. यहाँ यह उल्लेखनीय है की सभी परिवारों में हम लोगों का भारतीय ढंग से जैसा की ऊपर जिक्र किया, स्वागत और बिदाई हुई. सब परिवारों में ठाट बाट तो अमेरिकेन थे मगर फिर भी वातावरण भारतीय था. किसी के यहाँ गणेशजी का मंदिर, किसी के यहाँ अपने माता पिता के फोटो, अपने अपने घरों की यादें संजोये थे. डॉक्टर सुनेजा के यहाँ तो बंगले के एक हिस्से में मंदिर था. जिसमें राम-सीता हनुमान आदि आराद्धय देवों की स्थापना थी. सभी हिंदी में बात चीत करते हैं और अपने देश गाँव की याद करते हैं. और कुछ तो अभी भी दस पंद्रह बरसों बाद भी अपने अपने घर जाने की सोच रहें हैं. हमें हूस्टन में वहां के मंदिरों में गणेश उत्सव, जन्माष्टमी उत्सव पर गरबा अवं सांस्कृतिक कार्यों में भाग लेने का सौभाग्य मिला.
इसी बीच सितम्बर १०, २०११ को इंडिया हाउस में हूस्टन के सेनिअर सिटिज़न एसोसिऐसंन के वार्षिक कार्यक्रम में भी सम्मिलित होने का अवसर मिला. जहाँ पूरे भारत से आये लोगों के दर्शन हुए. और मुझे कविता सुनाने का भी अवसर मिला, जिसकी विस्तृत रिपोर्ट अन्यत्र सुरक्षित है. इसी बीच हम लोगों ने अपने दो धेवतों प्रिय सिद्धांत एवं प्रिय शौर्य का जनमदिवस सितम्बर १७, २०११ को, हूस्टन से ८० मील दूर इनक्रेडिबल पिज्जा कोनरो में धूम धाम से मनाया. जिसमें उक्त सभी परिवार शामिल हुए. हमें उन्हें धन्यवाद देने का अवसर मिला जिन्होंने अपनी गौरवमयी उपस्थिथि से उत्सव की शोभा बड़ाई.
संक्षेप में, भारत के प्रवासियों ने अपने श्रम लगन से अमेरिका में अपना
तथा अपने देश का नाम ऊंचा किया और अभी भी उनमें देश प्रेम परिवार वाद,
भारतीय संकृति धर्म कर्म के प्रति आदर सम्मान एवं श्रध्दा है. भारत से जाने
वाले मेहमानों का आत्मीय भाव से स्वागत सत्कार करते हैं. भारत में व्याप्त
कुरीतियों एवं संकीर्णताओं से दूर रहते हैं.
डॉ. जयजयराम आनंद
इंडिया हाउस हूस्टन में पठित दोहों का आनंद लीजिये.
हूस्टन ने सचमुच दिया , तन मन को आनंद/ कागज़ कलम कह रहे, लिखो अनूठे
छंद,
सबके चेहरों पर लिखा, भारत का संवाद/ पढने वाले पद सकें, खरा खरा अनुवाद.
यहाँ वहां की शान को, भारत के सब लोग / खून पसीना बहाकर, करते हैं
सहयोग.
सबको पढना आ गया, नदी नव संयोग/ जब जैसा वैसा वहां, योग-भोग संयोग.
जहाँ जरूरत हो वहां, करते हैं अनुदान/ दुनिया भर में बढ रहा, भारत का
सम्मान.
मत पूछो कैसा लगा, आ हूस्टन की छाव / जीवन भर भोलूँ नहीं, ऐसा अद्भुत ठांव.
दिया आप सबने मुझे, इतना सारा प्यार/ जीवन के इतिहास में, अजर अमर उपहार
भारत में जाकर कहूं, हूस्टन है वह गाँव/ लहर लहर लहरा रहा, जहाँ तिरंगा
नांव .
अमरिका की घोषणा, भारत योग महान/ माह सितम्बर गा रहा, जाने सकल जहान .
श्रध्दा सुमन बिखेर दो, उन वीरों के नाम/ प्राण निछावर कर गए, शत शत उन्हें
प्रणाम ||
डॉ. जयजयराम आनंद