हम तो अक्सर छले गए हैं प्रायोजित अनुबंधों से,
और शिकंजे कसे गए हैं आयोजित प्रतिबंधों से॥
इक तूफानी सागर हैं हम लहराते निज मस्ती में,
कौन कर सका हमें नियंत्रित षड्यंत्री तटबंधों से॥
उनकी असफल कोशिश सुरभि कैद करेंगे फूलों की,
हम तो खुशबू ले आते हैं प्रतिबंधित दुर्गंधों से॥
सीमाएँ हैं सभी सुरक्षित चौकस प्रहरी हाथों में,
कोई भी ख़तरा यदि है तो प्रतिघाती जयचंदों से॥
हम तो समझे मन का मिलना पूर्व नियोजित होता है,
शायद तुम ही उबर न पाए आयातित संबंधों से॥
सारे हार समर्पित तुमको प्रस्तावित अधिकारों के,
आप हमेशा रहे व्यथित अपने ही अंतर्द्वंदों से॥
उनकी कथनी उनकी करनी तीव्र विरोधाभासी है,
हम तो हैं प्रतिबद्ध "आरसी" मर्यादित सौगंधों से॥
- आर० सी० शर्मा “आरसी”