मैंने छला भोले मनुज को ,रक्त पीकर,
क्लीव-सम सौंदर्य पर आसक्त जीकर,
क्रूरतम अंतस लिए निष्प्राण मैं जीता रहा,
नीच ! विष मैं कलुष का ,हर श्वाँस में पीता रहा,
मैंने किया वह ही जो यह संसार करता,
कह ! कहाँ मैं इस जगत में सत्य का अभिसार करता॰॰॰
मैंने पढ़ा था पुस्तकों में ,भ्रूण-हत्या पाप है,
पर यहाँ नारी का लेना जन्म भी ,अभिशाप है,
निकृष्ट हैं वह जन जो ऐसा पाप करते हैं यहाँ,
तुच्छसम मरने को वे सरीसृप विचरते हैं यहाँ,
दैत्य कैसे मानवों से मानवी व्यवहार करता,
कह ! कहाँ मैं इस जगत में सत्य का अभिसार करता॰॰॰
सच भी लगे है झूठ जैसा ,इस जगत संसार में,
छल-कपट ,मल-विष ,मलिन-मन रत जगद्व्यवहार में,
मोल मेरे प्रेम का ,इस जगत में कुछ भी नहीं,
चलूँ विक्रय मैं करूँ ,सौहार्द्र कम में ही सही,
पर
जग-वणिक कम मूल्य में क्यों प्रेम का व्यापार करता,
कह ! कहाँ मैं इस जगत में सत्य का अभिसार करता ।
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ (लगातार)