जुदाई

हर रात के बाद रात आई
जख्म पर छिढ़का किसी ने नमक
कैसे सहें उनकी बेरुखाई
सुबह का बन्दा हुआ सफ़र
दर्द भरी यादों की चुभन
नादान दिल इन से बेखबर
हसरत भरी तमनाएँ
स्वप्ने में आरजू सजाएँ
आशाओं के उगाये महताब
सारी-सारी रात देंखें तेरा ख्वाब
थोढ़ी सी मिलन की आश
मन में जगाये जीने की प्यास
सह नहीं सकते तुम्हारी जुदाई
हर पल, हर लम्हा तेरी याद आई

 

सजन कुमार मुरारका

HTML Comment Box is loading comments...
 

Free Web Hosting