जुदा होकर तुमसे कैसे कहूं -"क्या दिन थे वो"
वो दिन, दिन नही, मेरे लिए तो रात थे,
हर पल तुम्हे याद करती ,
वो पल भी क्या पल थे- “जब साथ हम हुआ करते थे”
आये तुम सावन क़ी तरह
जिंदगी तब जिन्दगी लगने लगी
खुशियों क़ी बरसात लेकर- आये तुम “मेरे मन के आँगन में”
दामन को फूलो से भर दिया
रंगीन ख्वाब मै देखने लगी
चारो तरफ सब अच्छा लगने लगा
लगता था तब कि जैसे-“ सारी ये दुनिया खुश है”
उड़ने लगी मै भी हवा में
फूलों की तरह तुम सुंदर, मोर की तरह मनमोहक
तुमको देखते ही साँसे मेरी क्यूँ रुक जाती
तुम्हारी तरफ क्यूँ मै खीचती जा रही थी
फिर जिंदगी को अचानक मेरी खुशिया रास ना आई
क्यूँ और क्यूँ हम जुदा हुए
क्यूँ कुछ भी मै कर ना सकी
क्यू किस्मत को ये मंज़ूर नही हुआ ,
भूल गयी थी मै –“कि इंसान कटपुतली होता है” ,
उसे ख्वाब सजाने का कोई हक़ ही नही ,
जुदाई में तेरी मत पूछ -“क्या हुआ हाल मेरा”
क्यू भूल गयी थी में –
“कि नदी के छोर भी कभी एक हुआ करते है ,
कि आसमान भी कभी धरती से मिला करता है ,
और मिल न सके क्यूँ हम ,
कश्ती पहुच ना सकी किनारे पर ,
डूबते को न मिला तिनके का सहारा,
उजड़ गया क्यू सपनो का छोटा-सा आशियाना ,
हर पल गुमशुदा मै रहने लगी,
बुझी -२ सी ,पतझड़ के मौसम सी मै हो गयी
तेरी जुदाई को मै सह न पा रही थी
मेरी वो हँसीं न जाने कहाँ खो गयी
चुटकलों पर भी मुझे हँसीं न आती
महफिलों में भी अकेली मै हो गयी
उन लम्बे रास्तो पर तनहा मै चलती जा रही हूँ , बस चलती जा रही हूँ
जुदाई में तेरी मत पूछ -“क्या हुआ हाल मेरा”