कन्या की मजबूरी

मेरी यह मजबूरी है कि मजबूरी में आयी हूँ।
लोग कहंे कि सारे दुख और बहुत दरिदर लायी हूँ।
जन्म लिया जब हमने घर में, कहें भाग्य की फूटा है,
मेरा मुँह जब देखा सबने, दिल फिर सबका टूटा है,
माँ को इतने मिलते ताने, आंसू रोज बहायी हूँ।। मेरी यह मजबूरी ़ ़ ़
क्या संसार चलेगा नर से, केवल जरा बताओ तो,
विन सीता विन तुम राधा के, राम कृश्ण धुन गाओ तो,
जग मेरा है मै हूँ जग की, ऐसी आस लगायी हूँ।। मेरी यह मजबूरी ़ ़ ़
रक्षण अगर नहीं कर सकते, आरक्षण क्यों देते हो,
पग पग पर तुम साथ हमारा, सतत विलक्षण लेते हो,
मैं दहेज का साधन बन कर, फांसी रोज लगायी हूँ।। मेरी यह मजबूरी ़ ़ ़
अगर मारते रहे सदा तो, सूना जग हो जायेगा,
बहन बिहीन प्रिया जननी के, निर्जन मग हो जायेगा,
कालिदास सूर तुलसी मन, मैं अनुराग जगायी हूँ।। मेरी यह मजबूरी ़ ़ ़
पेट काटकर पति बच्चे हित, सदा सदा मैने जीया,
वे षराब पी पी मारे, मैनें कहाँ प्रतिकार किया,
घुट घुट कर मैं जीती रहती, पर परिवार जिलायी हूँ।। मेरी यह मजबूरी ़ ़ ़

HTML Comment Box is loading comments...
 

Free Web Hosting