नित्य जब हँसता मधुर विहान,
सजाकर किरण कुसुम से थाल ।
कौन भर अधरों पर मुस्कान,
लुटा जाती है विपुल गुलाल !
सुमन की पंखुरियों पर मौन,
आँसुओं की मोती चुपचाप !
नित्य बिखरा जाती है कौन ,
सिसक रजनी में अपने आप !
मन्द गति में आ मलय वयार,
सुना जाती किसका सन्देश ।
दूर प्राची तट के उस पार,
कौन फ़ैला देती घन-केश !
कौन आकर खोल देती है खोल,
रश्मियों का अक्षय भंडार !
विहग दल कर उठते कल्लोल,
प्रकाशित हो उठता संसार ।