तेरे खातिर मर गए कितने तो—-बिजेंद्र एस. ‘मनु’


तेरे खातिर मर गए कितने तो
तेरे खातिर मर गए कितने तो,
जिन्दा ही तेरे लिए रहता हूँ,
तेरी याद में कितने टूटे है,
तेरी याद में डूबा रहता हूँ,
तेरे तेज से कितने झुलस गए,
नज़रों से तेरी वो सुलगे है,
आवाज से तेरी काँपे वो,
खुद तेरे लिए ही उलझे है,
हिम्मत न जुटा पाए जिसकी,
मै जनम लिए ही कहता हूँ,
तेरे खातिर मर…………..
प्यार तेरा वो पा ना सके,
जो पाठ पढ़ाना चाहते थे,
कुछ क्षण बस खुश तू हो जाए,
तेरी खातिर क्या-२ लाते थे,
कुछ भाव के डर में मर ही गए,
तेरे भाव में डूबा रहता हूँ,
तेरे खातिर मर…………..
कुछ डाल के दिल को डटे रहे,
तेरे मुह से हामी सुनने को,
कुछ इंतज़ार में ढेर हुए,
संग तेरे सपने बुनने को,
तेरे दिल में कभी ना झांक सके,
तेरे दिल में ही छाया रहता हूँ,
तेरे खातिर मर…………..
यौवन में तेरे पुजारी थे,
ख़ुशी में तेरी साथ रहे,
विपदा में तेरी भाग गए,
बस दूर से हिलते हाथ रहे,
भले प्यार तेरा मुझ पर न हो,
तेरी विपदा कब से मै सहता हूँ!
तेरे खातिर मर…………..
न हरा सके कोई मुझको अब,
न प्रताड़ित ही कर पाए,
कितने ही तारे व्यर्थ रहे,
जब एक चाँद मुझे तू भाए,
कितने मुझे पाने ढहते है,
मै तेरे लिए ही ढहता हूँ,
तेरे खातिर मर…………..

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