ख्वाब की किरचें

सुधीर मौर्या "सुधीर'

वक़्त ने
मेरी बाह थाम कर
मेरी हथेली पर
अश्क के
दो कतरे बिखेर दिए
मेरे सवाल पर
बोला
ये अश्क नहीं
बिखरे ख्वाब की किरचे हे
सभांल कर रखो
युम्हे ये याद दिलायंगे
की मुफलिस
आँखों मर ख्वाब
सजाया नहीं करते.

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