शब्दों का झंझावत है क्या उलझना
दो जिस्म दो रूह दो जान
पर भाग्य की लेखनी से बंधे हम तुम
तुम कहते हो :हमारा साथ सात जन्मों का है
मैं कहती हूँ :ये मेरा सांतवा और आपका पहला जन्म है
तुम कहते हो: ऐसा क्यों कहती हो ?मेरा साथ नहीं चाहती?
मैं कहती हू: प्यार के कम होने से डरती हूँ
तुम कहते हो :कैसा डर?
मैं कहती हू : डर है आपकी ऊब का !
तुम कहते हो : ऐसा क्यों सोचती हो?
मैं कहती हू : जिसे अगाध प्रेम की कामना हो वो थोड़ी कमी से भी घबरा जाता है
तुम कहते हो: विश्वास नहीं मुझ पर ?
मैं कहती हूँ :मुझे खुद पर भरोसा नहीं,मेरा मन चंचल है
और तुम:तुम कुछ कहते नहीं बस मुस्कुरा देते हो
मैं और तुम या हम
शब्दों का झंझावत है क्या उलझना
हम तुम आज से नहीं जुड़े
अपनी माँ के गर्भ में आने के साथ ही
तीसरे हफ्ते में जब मेरे हाथों की रेखाएं बनी
मैं तुम्हारे साथ जुड़ गई
किसी ने चुपके से उन रेखाओं में तुम्हारा नाम लिख दिया
अक्स नहीं दिखता तुम्हारा मेरे हाथों में
तब शायद दिखता होगा
अब तो बस रेखाएं ही रेखाएं है
मैं और तुम या हम
शब्दों का झंझावत है क्या उलझना
जिस दिन से मैं माँ की गर्भनाल से अलग हुई
ये बात लोगो ने भी कहना शुरू कर दी थी
कहीं मेरे लिए तुम बना दिए गए हो
ईश्वर ने तुम्हे मेरे स्वागत के लिए
भेज दिया था इस दुनिया में
तब से लेकर आज तक
या आने वाले हर कल तक
तुम मेरे साथ हो........
मैं और तुम या हम
शब्दों का झंझावत है क्या उलझना
जब जब सुनती हू राधा कृष्ण की कथा
सिहर जाती हू इस बात से
कहीं में तुम्हारी रुकमनी तो नहीं?
डर ये नहीं की कोई राधा रही होगी
डर ये होता है की मेरा नाम तुम्हारे नाम के साथ
जन्म जन्मान्तर तक याद नहीं किया जाएगा
और जब बताती हू ये बात तुम्हे, तुम मुस्कुरा देते है
जेसे मुस्कुरा रहे हो मेरे बचपने पर
और मैं खुद अपनी ही सोच पर खिलखिला देती हूँ
मैं और तुम या हम
शब्दों का झंझावत है क्या उलझना
कभी कभी अचानक नींद से जाग जाती हू
और सोचती हूँ मेरे नाम का अर्थ
कही मेरे भाग्य से तो नहीं जुड़ गया
धर्मवीर भारती की "कनुप्रिया" की तरह
मैं भी तुम्हारे विरह में जीवन व्यतीत तो ना करुँगी?
कही में तुम्हारी राधा ना बन जाऊ
फिर अपनी ही सोच को दिल के
किसी कोने में दफ़न कर सो जाती हूँ
ये सोचकर की ये मेरे मन का वहम है
जब तुम्हे सुबह बताती हूँ ये स्वप्न
तो तुम हँस देते हो और थाम लेते हो हाथ मेरा
और मैं ?मैं तो किसी भावना को
व्यक्त करने की अवस्था में नहीं होती
मैं और तुम या हम
शब्दों का झंझावत है क्या उलझना
मुझे बन्धनों में ना बांधों
ये मेरा अंतिम जन्म ही भला
पर अपने अगले ६ जन्मों तक
मुझे याद जरूर रखना
मैं कहती हूँ :याद रखोगे ना?
तुम कुछ कहते नहीं बस देखते रहते हो मुझे
मैं सोचती हू :कैसा प्रेम है ये ?
तुम्हे छोड़ना भी चाहती हूँ और मुक्त भी नहीं करना चाहती
और फिर सोचती ही जाती हू अनंत ....
और तुम?तुम बस मुस्कुराते हो और मुस्कुराते चले जाते हो.....
कनुप्रिया गुप्ता