ऐ वीर ! मैदान-ए-जंग में उतर जा..– महेश बारमाटे ’माही’


मैदान-ए-जंग में उतर जा,
ऐ वीर ! तू आज कुछ कर गुजर जा,
आज तुझे है किस बात का इंतजार ?
किसी की खातिर न सही,
देश के लिए तो आज तू मर जा…
ज़िन्दगी में कुछ न किया, न सही…,
पर आज तू देश के लिए कुछ कर गुजर जा…
सोच के तेरा महबूब
देश की इस माटी में है बसा…
और उसके लिए जंग लड़ना
तेरे लिए है इक खुबसूरत सजा…
बस उस महबूब की आन की ख़ातिर,
और देश की शान की ख़ातिर,
देश के दुश्मनों से आज तू लड़ जा,
ऐ वीर ! देश के लिए आज तू कुछ कर जा…
मत भूल के इसी माटी पे खेल कर, तू है बड़ा हुआ…
इसके ही आशीर्वाद से, अपने पैरों पर तू है खड़ा हुआ…
इसकी ही गोद में है तू ने हर ख़ुशी पायी,
पर आज देश के दुश्मनों को नहीं है इसकी खुशहाली भायी…
दुश्मन को देने को मुँह तोड़ जवाब,
आज तू मैदान-ए-जंग में उतर जा…
ऐ वीर जवान !
आज भारत माँ का क़र्ज़ चुकता कर जा…
आज इस देश को तू,
हर एक ख़ुशी दे दे…
हो सके तो इसकी ख़ातिर मर के तू,
इसे एक नयी जिंदगी दे दे…
देश की इस जंग में तू, अपनी हर एक हद से गुजर जा,
खुशहाल भारत का सपना,
आज हर एक भारतीय की निगाह में सच कर जा…
के बदनसीब है वह इन्सां,
जिसके दिल में वतन के लिए मुहब्बत नहीं…
कोशिशें तो सभी करते हैं,
पर वतन के लिए मर मिटना हर किसी की किस्मत नहीं…
मिला है मौका तुझे, तो भारत माता का सपना पूरा कर जा…
ऐ वीर दोस्त मेरे! आज तू भारत माता के लिए, दुश्मन का सिर कलम कर जा…

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