"मन-मकरंद"

कृति - मोहित पाण्डेय "ओम" 
         (Mohit Pandey)

ऐ वो खुदा तू सुन ले जरा,
आज शिकायत भारी है|
क्या हाल बना रखा अपना,
ये कैसी मति हमारी है|
दोष क्या है मेरे माली,
तेरी ही तो फुलवारी है|
गर फूल कली वो तेरी है,
तो मै भी तेरा गैर नहीं|

चंचल चितवन नयन सुलोचन,
मधु भीनी वो पुष्प कली|
मधुपान मगन मै प्यासे अधरों से,
सीने में किसी के जलन जली|
अधिकार जताता रौद्र रूप वह,
उसकी है यह पुष्प कली|
कैद किया अपनी मुट्ठी में,
फिर वक्तव्य कहे कुछ अनजाने|

ऐ मकरंद यह मत आना,
कईयों ने जाने वारी है|
हतप्रभ सा हुआ वह मानव,
सुनकर मेरा प्रत्युत्तर
अमर प्रेम में मर बैठे हम,
चर्चा जगत विचारी है|
सुनते ही मसला उसने,
जान इश्क में वारी है|

 
ऐ वो खुदा तू सुन ले जरा,
आज शिकायत भारी है|
तू कहता मै मकरंद नहीं,
गर मै मधु निषेध करूँ|
दुनिया कहती है मतवाला,
गर मै मधुपान करूँ|
अब तू ही बता मेरे मौला,
क्या मै कर्त्तव्य विहीन मरूँ|

तू तो सबका मालिक है,
बस एक करम मेरा कर दे|
मेरे जीवन की हर खुशियाँ,
उस पुष्प कली 'छवि' में भर दे|

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