दूर से तक रहा
आज मुझको मौन मेरा
असमंजस में है
उलझा रहा मुखर मेरा,
कंदराओं में रचे चित्र
चल पड़े वाचाल से
पाशाणें में अंखुआये
नम एहसास निहाल से ,
गूंज रहे
घाटियों में
हवाओं के कलाप
चोटी पर थिर है
अब मेरे सपनों के आलाप ,
प्रतिबिम्बों की हलचल
रच रही अब नई सृश्टि
क्यूं न हो अब कलम मेरी
नई कविता रचती
अंधियारे उजला रुप
पाने लगे नई दृढताओं से
सपने पूरे हुए अब
घर के मन बंजारों के ..............किरण राजपुरोहित नितिला