मेरा बचपन . . .


मन की अधूरी राह में,
हर अधूरी चाह में,
हैं जो चिरंतर हाहाकार,
अंतर्मन का करून चीत्कार,
मुझे और जीने नहीं देता,
चाहकर भी भूलने नहीं देता

दर्द भरी यह मेरी मनोब्यथा . . .
जब कभी भी मन मेरा ज्यादा घबराता,
याद मुझे मेरा बचपन आता,
था वोह बचपन जो सुना सुना सा,
याद ना आये प्यार अपनों का,
सबमे में एक अकेला न्यारा न्यारा,
किसी ने स्वीकारा, किसी ने दुत्कारा,
कब हंसा, कब रोया,
कब जगा, कब सोया,
पी के आंसू अपने,
हर गम को खुद में संजोया ,
टूटे सारे सपने सलोने ,
बीता बचपन जाने अनजाने ,

छोड़ गया इक धुंदली परछाई . . .

याद कर आज आँखें भर आई.
तब में था अकेला,
ना कोई था साथ मेरे,
अब जब सब हैं साथ मेरे,
गुमशुम किसी रात में,
पाता हूँ खुद को फिर भी अकेला . . .


:-सजनकुमार मुरारका

HTML Comment Box is loading comments...
 

Free Web Hosting